गुरुवार, 26 जुलाई 2012

!! 'हिंदी' !!

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'हिंदी'
तुम बनी ही हो
बेईज्जत किये जाने के लिए !
न्यायालयों से ले कर
राष्ट्रपति भवन तक....,
और
संसद से ले कर
विधान सभाओं तक....,
कंधे उचका-उचका कर
टेढ़ी मुस्कानों के साथ
देश के कर्णधार
करते रहते हैं
तुम्हारा ''चीरहरण'' !!
लोटते हैं जो
विदेशी भाषा के
चरणों में,
और
गर्व नहीं जिन्हें
अपनी राष्ट्र भाषा पर,
'वे' क्या
गौरव बढ़ाएंगे,
स्वाभिमान बचायेंगे
अपने देश का.....,
अपने देशवासियों का ....!!
राष्ट भाषा,
राष्ट्र गौरव,
राष्ट्र स्वाभिमान को
ताक पर रखने वालों को
याद रखना चाहिए,
'क्रान्ति'
नहीं होती सत्ता से....!!!
क्रान्ति होती है
राष्ट भाषा,
राष्ट्र गौरव,
राष्ट्र स्वाभिमान
से ओत-प्रोत
अवाम से,
और तब
''मुखोटे''
होते हैं
इतिहास के
कूड़ेदान में !!!

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शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

'पर' खोले है अभी तो,मेरी उड़ान बाकी है !

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'पर' खोले है अभी तो,मेरी उड़ान बाकी है ! 
नापने को धरती और आसमान बाकी है !! 
हारा हुआ मुझको ना समझ लेना ए दोस्तों, 
होसलों में मेरी अभी तलक जान बाकी है !! 
वो 'मुफलिस' खा रहा भूखों संग मिल-बाँट कर,
 पगला-अजूबा है,उसमें अभी 'इंसान' बाकी है ! 
मुझ पर है क़र्ज़ जिनका,वो सो जाए चैन से, 
है गर्दिश में सितारे मेरे मगर,ईमान बाकी है ! 
तुम ना दोगे पनाह तो कोई बात नहीं 'अशोक'- 
दुनिया में और भी बहुत से मेहरबान बाकी है !

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रविवार, 15 जुलाई 2012

!! रखवालों के काँधे पर कानून की शव-यात्रा !!

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 .....प्रतिदिन खबरिया चैनलों और अखबारों में ह्त्या,बलात्कार,अपहरण,भ्रष्टाचार,चोरी-डकैती की अनगिनत ख़बरें आती रहती है,और इन ख़बरों के बिना दिन की शुरुआत ही संभव नहीं है ! इसके उलट,अपराधियों की धर-पकड़ की ख़बरें अभी-कभार और उनको सज़ा की ख़बरें तो अपवाद स्वरूप ही सुनाई देती है ! खबरिया चैनल या अखबार जितनी प्रमुखता से अपराधों की ख़बरें देते हैं,उसके मुकाबले किसी अपराधी को सज़ा की खबरें आई हो,यह खोज का विषय है.इसका कारण यही है कि यहाँ अपराध तो 'अनवरत' और 'थोक' में होते हैं,लेकिन अपराधियों को सज़ा 'अपवाद' स्वरूप ही होती है, तो फिर खबरिया चैनल और अखबार भी क्या करे!
......आप खुद याद कीजिए कि आज तक कितेने हत्यारों,बलात्कारियों,अपहरंकर्ताओं,डकैतों,भ्रष्टाचारियों को यहाँ सज़ा मिल पायी है ! इन सबके पीछे कारण मात्र  ये ही है कि कानून तो लचर है ही,कानून के रखवाले भी,'कानून' से ज्यादा 'अपराधों और अपराधियों' के ही 'रखवाले' बने हुए हैं! ये ठीक है कि 'सौ अपराधी भले ही छूट जाए,लेकिन एक निरपराधी को सज़ा नहीं होनी चाहिए' लेकिन हमनें तो इसको इस रूप में ही ले लिया है कि ''निरपराधी को तो सज़ा नहीं होनी चाहिए,किन्तु सौ अपराधी भी आराम से छूट जाने चाहिए !'' अपराधियों में भय पैदा करने वाले 'म्रत्युदंड'' को हम ख़त्म करने की और अग्रसर हैं,और 'उम्रकैद' का भय अब किसी को रहा ही नहीं ! संगीन अपराधियों को 'माफ़ी' दे कर अपराधियों के होसले बुलंद कर हम किस समाज की रचना कर रहे हैं,समझना मुश्किल है !
......साफ़-साफ़ दिखाई देने वाला अपराधी ''कसाब'' यहाँ वर्षों तक 'बिरियानी' उडाता है,देश के 'दिल' को छलनी करने वाला 'अफ़ज़ल' मौज,मनाता है,''कलमाड़ी-राजा का जमावड़ा'' जश्न मनाता है....और एक अदना सा पोकेटमार-चवन्नी चोर ''कानून के मुस्तेद रखवालों'' द्वारा जेल भेज दिया जाता है.....!!!ये ही कानून है !!!
......अगर कानून ही 'मुर्दे' हैं तो फिर ऐसे कानूनों को क्यूँ नहीं 'दफ़न' कर देना चाहिए ?और अगर कानून के 'रखवालों' की ही 'नियत' साफ़ नहीं है तो फिर उन्हें भी क्यूँ नहीं 'अपराधी' घोषित किया जाना चाहिए ? क्या अब कानून बनाने वालों का काम यही रह गया है कि वे टैक्स लगाते रहें,महंगाई बढाते रहे,आरक्षण की राजनीति करते रहे ? देश के कमजोर और निरर्थक कानूनों को बदलने का क्या उनके पास समय ही नहीं है ?
......गुहाटी में हुआ शर्मनाक काण्ड का भी हश्र यही होगा कि वो दो-चार दिन ख़बरों में रहेगा.....कुछ अपराधी पकड़ लिए जायेंगे......फिर आसानी से उनकी ज़मानत होगी.....केस लंबा खींचेगा......कानून के रखवालों की जेबें भरी जायेंगी.....और जब लोग भूल चुके होंगे,तब अपराधी हँसते हुए बरी हो जायेंगे और किसी को कानोकान खबर भी नहीं होगी....!लालची मीडिया फिर किसी खबर को 'सनसनी' बना के 'सबसे पहले पेश' करने की जुगत में भिड़ा रहेगा,और अपराधियों के अंजाम की खबर को लोगों तक पहुंचाने की उसे कभी फ़िक्र ही नहीं रहेगी!
......कानून के रखवाले,कानून के शव को रोज अपने काँधे पे उठा कर शवयात्रा निकालेंगे,उसका धूमधाम से अंतिम संस्कार कर आयेंगे,और अपराधी 'तेहरवीं' में  आकर ''जीमते'' रहेंगे !!
......अपराधियों और अपराधियों के सरपरस्तों में कानून का भय बिठाए बगैर एक अपराध रहित समाज की कल्पना नहीं की जा सकती.कानून बनाने वाले लोगों को अब इस पर गंभीरता से गौर करना चाहिए.     

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शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

!! मुक्तिका-30 !!


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------------- बरसाती मुक्तिका -------------
आबाद हल-बैलों से अब खेत-खलिहान हो गए !
बादल गाँव पर मेरे,जम कर मेहरबान हो गए !!
खा कर थपेड़े लू के,मरणासन्न थे जो बेचारे,
पौधें वो लिपट के बारिशों से बांके-जवान हो गए !
छेड़ा है राग भौरों ने,कलियों के पास मंडरा कर,
शाख पे लटकते फूलों के,खड़े अब कान हो गए !
इठलाती नदी निकली है,मेरे गाँव की सरहद से,
उफनते नाले मिलने को उससे,बेईमान हो गए !
'पर' निकले चींटियों के,मकोड़े बदहवास से हैं !
कीट-पतंगे अब घरो में बिन बुलाये मेहमान हो गए !! 
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