शनिवार, 18 अगस्त 2012

!!बुद्धिजीवियों की जुगाली !!


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......क ने कहा-'मुझे पता था....ये ही होना था...!'
......दूजा बोला-'मैं भी बिलकुल जानता ही था....इनका आन्दोलन सफल हो ही नहीं सकता....!'
......''रे चाय देना यार....'' उन्हीं मेसे एक ने आदेश दिया.
......तीसरे ने मुंह खोला-'सब अपनी चमकाने में लगे थे....बड़े चले थे अनशन करने....मुझे मालुम ही था....'
......भी 'छोरा' चाय ले आया, उसे पांच 'कचोरी' का आर्डर दे दिया गया....देश हित का चिंतन ''खुराक'' मांग रहा था.
......चौथे  ने चश्मा ठीक किया तो हलक में अटका ज्ञान बाहर आया- 'ये 'अन्ना-बाबा' क्या ठीक करेंगे देश को....मेरे को तो पहले दिन से ही पता था.....'
......'छोरा' ''कचोरियाँ'' ले आया.चाय की चुस्की और कचोरियों की कच-कच के साथ देश हित में चिंतन जोर पकड़ चुका था....बुद्धि की जुगाली चरम स्तर पर पहुँच चुकी थी....
......पांचवे ने डकार लेते हुए प्रवचन दिया-'अवाम को लेकर सड़क पर उतरने से क्या क्रान्ति होती है क्या !मुझे तो शुरू से ही शक था कि.....' 
......''सा'ब,और क्या लाऊं...?''- 'छोरे' ने ज्ञानियों का चिंतन भंग कर दिया.
......''स यार हो गया...'' - एक लंबी डकार लेकर मुंह पोंछते हुए बोला.
......''तो अब चलें....'' उनमे से एक बोला.
......ब उठ के चल दिए....'ज्ञान' की उल्टियां वहां बदबू मार रही थी....घोटाले में 'कोयला' धधक रहा था....!!!
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शनिवार, 11 अगस्त 2012

!! माँ-बाप की गलतियाँ !!

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!! माँ-बाप की गलतियाँ !!
(निवेदन : सच का सामना करने की हिम्मत रखने वाले ही इस कविता को पढ़ें.)
आदरणीय माताजी-पिताजी
आपने मुझे जन्म दिया
तो क्या एहसान किया?
ये तो 
सभी करते ही है !
हाँ,
आपने जो 
बहुत बड़ी गलतियाँ की है
वो मैं नहीं छुपाऊँगा,
आखिर में 
ज़रूर बताउंगा !!
मुझे पाला-पोसा
पल-पल मुझ पर 
वार दिया,
तो क्या एहसान किया?
ये तो 
सभी करते ही है !
हाँ,
आपने जो 
बहुत बड़ी गलतियाँ की है
वो मैं नहीं छुपाऊँगा,
आखिर में 
ज़रूर बताउंगा !!
जब भी मैं 
बीमार हुआ,
आप भूखे-प्यासे 
दौड़ते रहे 
डाक्टर के पास,
रात-रात भर जाग कर 
बैठे रहे उदास !
तो क्या एहसान किया?
ये तो 
सभी करते ही है !
हाँ,
आपने जो 
बहुत बड़ी गलतियाँ की है
वो मैं नहीं छुपाऊँगा,
आखिर में 
ज़रूर बताउंगा !!
मुझे पढ़ाया-लिखाया
नौकरी-धंधे के काबिल बनाया,
तो क्या एहसान किया?
ये तो 
सभी करते ही है !
हाँ,
आपने जो 
बहुत बड़ी गलतियाँ की है
वो मैं नहीं छुपाऊँगा,
आखिर में 
ज़रूर बताउंगा !!
मेरी शादी की,
मेरे बच्चों को 
मुझसे भी ज्यादा 
प्यार किया,
तो क्या एहसान किया?
ये तो 
सभी करते ही है !
हाँ,
आपने जो 
बहुत बड़ी गलतियाँ की है
वो मैं नहीं छुपाऊँगा,
आखिर में 
ज़रूर बताउंगा !!
मुझे 'गर 
जुकाम भी हुआ
आप बहुत घबराए,
रात की बस पकड़ कर ही,
'मेरे घर' दौड़े चले आये !
तो क्या एहसान किया?
ये तो 
सभी करते ही है !
हाँ,
ये अलग बात है कि
माँ,
जब तुम हो गयी अशक्त,
और 
पिताजी की बूढी काया ने
पकड़ लिया बिस्तर,
तुम रोती रही 
रात-रात भर !
लेकिन मैं
घर नहीं आ पाया,
क्योंकि नौकरी-धंधे से 
छुट्टी नहीं ले पाया !
हाँ,
अब सुनलो आपकी गलतियाँ-
''मुझ जैसे 
स्वार्थी,खुदगर्ज़,कपूत बेटे को 
जन्म दिया,
यह आपकी पहली गलती थी !
फिर कईं बार,
मुझे कईं विपत्तियों से बचाया,
मौत के मुंह से भी 
वापस लाया.....,
ये आपकी 
सबसे बड़ी गलती थी !!
कपूत बेटे के 
सभी गुणों से युक्त 
'मैं' आज 
आप की बदौलत 
अपनी बीबी-बच्चों के साथ
मस्त हूँ !!
आप अपना बुढापा काटो
अपने ही दम पर,
मत बोझ बनों 'हम' पर !!
हमारा तो बाकी है अभी
'जिंदगी और करियर',
आपका तो बुढापा है अभी 
वैसे भी 
मौत के मुहाने पर....!
हाँ,
अंत में मैं 
ऊपर वाले से 
एक प्रार्थना ज़रूर करूंगा 
कि भगवान्
मेरे जैसा कपूत बेटा 
किसी को ना दें.....,
और 
आप जैसे माँ-बाप 
सभी को दें.......!!
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बुधवार, 8 अगस्त 2012

!! पथप्रदर्शक !!

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बचता नहीं
कोई विकल्प,
मात्र एक 'संकल्प'
बहुत काम आता है,
यही 'संकल्प'
कईं 'विकल्प'
दे जाता है !!
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ब बंद है
रास्ते तमाम,
और मैं 
चल पडा हूँ
'अटल इरादों' का
फावड़ा लिए
एक पथ बनाने.
बुहारने हैं कांटे,
हटाने पत्थर
राह में आने वाले !
गुज़रना है 
आग से,
पानी से,
और
पहाड़ से भी !
देखता हूँ
कब तक रहेगा बंद
रास्ता........!!!!
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तझड़ में खड़े पेड़ को
अपना सबकुछ 
छिन जाने का भाव
जीने नहीं देता......,
और
बसंत-बहार की उम्मीद
उसे मरने नहीं देती....!
अपनी जड़ों को जमाये
चुपचाप खडा पेड़
न हवाओं से शिकायत करता है....,
ना बादलों से भीख मांगता है....,
और ना ही 
सूरज से
रहम की फ़रियाद करता है....!
वह अटल खडा है,
अपने 
अटल विश्वासकी बदौलत !!
एक दिन बहार ज़रूर आएगी...!!!
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छाए जब
निराशा के बादल,
और
हताशा ने
जब घेरा मुझको,
तब 
रास्ते सभी
बंद से नजर आये !
शीशे में देखा तब मैंने
प्रतिबिम्ब अपना,
तो चौंक गया मैं,
देख कर
पतझड़ के सताए
एक
पेड़ को !
सहसा
'अन्दर' से एक
आवाज़ आई -
''दुत्कार कर निराशा को,
लतिया कर हताशा को
आगे  बढ़ा एक कदम
दिखेंगे रास्ते कईं !!''
मैंने पुनः देखा
शीशे में प्रतिबिम्ब अपना,
एक  हरा-भरा
फूलों-फलों से लकदक
पेड़ खडा था,
जीने की आरजू लिए !!
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रविवार, 5 अगस्त 2012

!! लक्ष्य की ओर बढ़ते 'अन्ना' के कदम !!


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.......देश  के अवाम की बेहतरी के लिए  पर्याप्त  जनसमर्थन के बल पर 'अन्ना' द्वारा शुरू किये गए एक जन-आन्दोलन का राजनीति में प्रवेश करना कईओं के गले नहीं उतर रहा है ! सरकार और सरकार की 'सोच' रखने वाले लोग 'अन्ना' के जन-आन्दोलन को अधूरे आन्दोलन की 'मौत' मान कर जश्न मना  रहे हैं,जो कि एक खुशफहमी के अलावा कुछ भी नहीं है.
.......वैसे भी सरकार और उसके अंध-भक्तों के गले की फांस बन चुका 'अन्ना' का ये जन-आन्दोलन उनकी बैचेनी का प्रमुख कारण बना हुआ  था,और सरकार का पूरा प्रयास ही ये था कि कैसे भी करके ये जन-आन्दोलन अपनी मौत मर जाए,ताकि उसके काले कारनामें उसकी लुटिया ना डूबा सके.इसके  लिए  प्रयास इतने निम्न स्तर पर पहुँच चुका था कि सरकार के बड़े-बड़े 'मंत्री' अन्ना को बातचीत का धोखा दे कर,उनकी टीम में गलतफहमी पैदा कर टीम को तोड़ने पे उतारू  थे ! सलमान खुर्शीद जैसे विद्वान लोग 'अन्ना' से बातचीत मात्र इस लिए कर रहे थे ताकि अंग्रेजों  निति 'फुट डालो और राज करो' को अमल में लाया जा सके!सलमान खुर्शीद के मीडिया को दिए गए बयान अंग्रेजों की उसी निति का खुलासा करते हैं!
.......देशहित और अवाम के हित की बात करने वाले 'टीम अन्ना' के सदस्य जब 'गांधी' के पदचिन्हों पर चलते  हुए अनशन कर रहे थे,तब ये 'गांधीवादी'सरकार संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पर पहुँच कर अनशन करने वालो की 'मौत' का इंतज़ार कर रही थी ! लोकतंत्र में एक सरकार जब अपनी ही जनता की आवाज़ सुनना बंद करदे और उसकी जान की दुश्मन बन जाए तो फिर उसके नैतिक पतन में बाकी क्या बचता है ? इस सरकार ने ये बात खुले रूप में बता दी है कि वह अवाम की वाजिब बात भी सुनने को तैयार नहीं है,और वह इस देश को वैसे ही भ्रष्टाचारपूर्ण तरीकों से चलाएगी जैसे वह चाहती है ! ऐसी स्थिति में एक ही रास्ता बचता है कि मौत को गले लगा कर भ्रष्टाचारियों को मनमानी करने के लिए खुला छोड़ देने से बेहतर है कि राजनीति के माध्यम से संसद में बहुमत जुटा कर इस देश को बचाया जाए !'टीम अन्ना' ने,देश के कईं हितचिंतकों की  बातों पर गौर करते हुए आखिर राजनीति में आने का निर्णय लेकर इस देश को भ्रष्टाचार मुक्त करवाने और अवाम को उसका हक़ दिलवाने के अपने लक्ष्य की और ही एक महत्वपूर्ण कदम बढाया.
.......भ्रष्ट नेताओं और उनके पिट्ठुओं में मची खलबली भी इसी बात को पुख्ता करती है कि 'अन्ना' का आन्दोलन मरा नहीं बल्कि साहस और शक्ति के साथ एक सही दिशा में बढ़ चला है.          
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शनिवार, 4 अगस्त 2012

!! दिखावटीपन की इन्तेहा का दौर है ये !!

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अब  ठहाके लगाना तो छोडिये,हंसना तक मुश्किल हो गया है !तथाकथित 'भद्र' और 'एजुकेटेड' दिखने के लिए लोग बस मंद-मंद मुस्कुरा कर रह जाते हैं !ठहाके लगा कर हंसने से उनका 'स्टेटस' प्रभावित हो जाता है ! इंसान आज ठहाके लगाने की जगह पर भी खुल कर ठहाके नहीं लगा सकता..., और रोने की जगह पर खुल कर रो भी नहीं सकता....!! ठहाक लगाने से उसकी तथाकथित 'गंभीर' और 'चिन्तक' की छवि को 'बट्टा' लग सकता हैऔर रोने से उसकी 'कमजोरी'प्रकट हो सकती है !! 'छींक' और 'जम्हाई' जैसे प्राकृतिक आवेगों पर वो शर्मिंदा होता है, और इस शर्मिंदगी को वो ''सॉरी'' कह कर कम करने की कौशिश करता है !!! 
दिखावटीपन की इन्तेहा का दौर है ये !!!
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!! प्यार,मुहब्बत,इश्क,वफ़ा तू करके देख !!

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प्यार,मुहब्बत,इश्क,वफ़ा तू करके देख !
कसमो-वादों की गली से गुज़र के देख !!
नज़रों से नज़रें मिला कर हासिल क्या,
दिलबर को कभी बाहों में भी भरके देख !!
कर ना पायेगा जुल्मों-सितम तू कभी,
अपने खुदा से बस थोड़ा सा डर के देख !!
देकर खैरात मुफलिसों को ना भाग यूँ,
ज़ख़्म उनके दिल के कभी ठहर के देख !!
घूमता है बन कर 'मुंसिफ' तू खूब 'अशोक',
मसले ज़रा अपने भी कभी घर के देख !!
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!!सादर श्रृद्धांजलि!!


!!सादर श्रृद्धांजलि!!