शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

!! फुटपाथ पर कराहता इन्साफ !!

      !! फुटपाथ पर कराहता इन्साफ !!
      पता नहीं लोग फुटपाथों पर क्यूँ सोते हैं ! क्या फुटपाथों पर सोने वालों को इतना भी पता नहीं कि फुटपाथ 'रईसजादों', 'बेवडों' के कारनामों के लिए बने हैं ! अरे भाई, मरने का इतना ही शौक है तो कोई अन्धेरा कुंआं ढूंढ लो, किसी मल्टी स्टोरी बिल्डिंग से छलांग लगा लो ! यूँ फुटपाथों पर सो कर बेमौत मारे जाने का 'गुनाह' करके क्यूँ किसी सेलेब्रिटी का, नशे में चूर रईस का कोर्ट-कचहरियों में समय खराब करते हो !
      मैं तो कहता हूँ जो गरीब, मुम्बई में बेकरी के बाहर हीरो की गाडी से कुचल कर मारेजाने का 'गुनाहगार' है,उसे माननीय अदालत के माध्यम से नोटिस भेजा जाना चाहिए कि वो पुनः ज़मीन पर आ कर 'हीरो' से और 'माननीय कोर्ट' से उनका अमूल्य समय खराब करने के लिए माफ़ी मांगे, क्योंकि उस भोले मृतक के अलावा सभी जानते थे कि कोर्ट किसी भी रईसजादे का कभी भी कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती ! ऐसे में 'माननीय कोर्ट' और 'सम्माननीय हीरोजी' का समय खराब करने की जुर्ररत कैसे की उस 'गरीब' ने !वैसे भी जब आरोपी कोई 'हीरो' हो तो उसे कोई दंड कैसे दिया जा सकता है ? अरे भाई उस पर फिल्मों में करोड़ों-अरबों रुपये लगे होते हैं, क्या एक 'अदद गरीब' की मौत पर किसी का करोड़ों का नुकसान जायज़ है ? और फिर भारत की उस 'मनोरंजन प्रिय' जनता का क्या होगा, जिनका हाजमा इन हीरो की झूठी हिरोगिरी देखे बिना बिगड़ा रहता है ? बेकरी के बाहर हीरो की गाडी से कुचल कर बेमौत मारे जाने वाले ए 'गुनहगार गरीब', ऊपर से इधर निचे देख ज़रा, तेरी मौत पर जितनों ने मातम ना मनाया होगा ना, आज उससे कईं गुना ज्यादा 'पत्थर दिल तमाशबीनों' ने अपने हीरो की बाइज्जत रिहाई पर ढोल-नगाड़ों के साथ जश्न मनाया है ! ले,अब तू करले, क्या कर लेगा?
      बेकरी के सामने हीरो की गाडी से कुचल कर बेमौत मारे जाने वाले ए 'गरीब गुनहगार', इन तेरह सालों में तेरी रूह को तो ऊपर वाले ने ज़रूर सुकून बख्श दिया होगा, किन्तु निचे हीरो और उसके मुरीदों की आत्मा को शान्ति मिलने में पुरे तेरह बरस लग गए तेरे कारण ! अब बोल तुजे क्या सज़ा दी जाए ? मैं तो कहता हूँ हीरो को अब कोई ऐसा ताक़तवर 'पेरवीकार' रखना चाहिए जो 'माननीय कोर्ट' के माध्यम से, ज़न्नत में आराम फरमा रहे, बेकरी के सामने फुटपाथ पर सोकर बेमौत मारे जाने का 'गुनाह' करने वाले उस गरीब को पुनः निचे बुला कर उस पर मुकदमा चलाए !
      बेकरी के सामने फुटपाथ पर सो कर 'खाए-पिए' हीरो की गाडी से कुचल कर मारे जाने का गुनाह करने वाले ए गरीब, तेरा गुनाह तो साबित हो गया......कि तू फूटपाथ पर सोया ही क्यूँ ! लेकिन तुझे किसने कुचल दिया, 'इन्साफ के देवता' ये नहीं बता पाए ! हमारे हीरो को इन्साफ मिल गया.....तुझे मिला ना मिला, क्या फर्क पड़ता है ! हमारी फिल्मों में इन्साफ हीरो ही करता है,यहाँ भी इन्साफ हीरो को मिल गया तो क्या हो गया ! आखिर इन्साफ किसी बेकरी के बाहर फुटपाथ पर सो कर 'रईसजादों-बेवडों' की गाडी से कुचल कर मारे जाने का 'गुनाह' करने वाले 'गरीबों' के लिए था ही कब????? 
'भांड-भक्तों',आज सोना मत........आज जश्न की रात है !!!
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सोमवार, 7 दिसंबर 2015

!! अच्छे दिनों का सरकारी चुटुकला !!

अच्छे दिनों का सरकारी चुटुकला
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 मानाकेंद्र सरकार ने अपने पचास लाख कर्मचारियों के लिए 'एडवेंचर ट्रिप' का ऐलान किया है! इसका कारण ये बताया गया है कि इससे कर्मचारियों का तनाव घटेगा और टीम भावना का विकास होगा तथा चुनौतियों को स्वीकारने की क्षमता बढ़ेगी !
    अब देखिये,ये चुटुकला नहीं तो और क्या है ! एक तो केंद्र सरकार के कर्मचारी,यानी वैसे ही पाँचों उंगलिया घी में, और अफसरों के तो सिर भी कडाही में ! सरकारी कर्मचारी को तनाव था ही कब? तनाव तो जितना भी है, जो भी है, जैसा भी है, भोलीभाली अवाम के हिस्से में ही है ! सरकारी कर्मचारियों ने तो सारा का सारा तनाव अवाम को दे रखा है, दफ्तरों के चक्कर लगाने और जेबें गर्म करने के लिए! अब जबकि तनाव है ही नहीं तो कम क्या करेंगे !
    सरकारी कर्मचारियों में टीम भावना का विकास करना इस ‘एडवेंचर’ की दूसरी महत्वपूर्ण बात है ! अरे भाई, सरकारी कर्मचारियों के जैसी ‘टीम भावना’ और कहाँ मिलेगी? निचे से लेकर ऊपर तक जैसे मिलबांट कर खाते हैं, कोई दुसरा उदाहरण तो बता दो ऐसा ! जब ऐसी टीम भावना में कोई कसर ही नहीं है, तो उसका विकास क्या ख़ाक करोगे !
    अब रही तीसरी बात. ‘चुनौती’ स्वीकार करने कि क्षमता बढ़ाना ! चुनौती तो वे अवाम के आम आदमी को देते ही रहते हैं ! ‘जब तक तू टेबल के निचे से करारे नोट नहीं सरकाएगा, तेरा काम नहीं होगा! जा तेरी हो जो करले !’ अब इससे ज्यादा चुनौती की क्षमता उनसे और क्या चाहती है केंद्र सरकार !
    कुल मिला कर ऐसे ‘सरकारी चुटुकले’ अच्छे दिनों की संभावनाओं को पुख्ता कर रहे हैं ! ‘अच्छे दिन’ सरकार, सरकारी कर्मचारियों और धन्ना सेठों के आ जाएँ बस ! अवाम का क्या है ! वो तो सदैव ही सरकारों द्वारा दिखाए गए झूठे सपनों पर ही जीती आ रही है ! अच्छे दिनों का एक सपना और सही!! सपनों पर साठ साल गुज़ार दिए तो पांच साल और कौनसी बड़ी बात है!  

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