शनिवार, 29 जनवरी 2011

!! मुक्तिका !!

***** !!  तन्हाईयों का शहर !!*****

तन्हाईयों का घर है !

ये शहर है !!
हर जगह है मेला,
शख्श तन्हा मगर है !!
साथ-साथ है सभी,
किन्तु मन में डर है !!
काम,काम बस काम,
ना शाम ना सहर है !!
खाली है आसमां लेकिन,
परिंदे बे-पर है !!
माफ़ करना ''अशोक'',
बातें मेरी ग़लत अगर है !!.
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शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

!! मुक्तिका !!


**** !! मुझको जो भी दिखा है !! *****

मुझको जो भी दिखा है,
मैंने वो ही लिखा है.
'दांव-पेच' दुनियादारी का,
दुनिया से ही सिखा है.
'शायर' है ग़रीबों का वो,
हर शेर उसका तीखा है.
ढूंढे से भी मिलना मुश्किल,
जिसका इमां ना बिका है.
गले मिले,कोई पकडे गला,
अपना-अपना तरिका है ! 
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------ अशोक पुनमिया ------

बुधवार, 26 जनवरी 2011

!! गणतंत्र !!

******* !! गणतंत्र !!*******

देशभक्ति के गीत भी बज गए !

झंडा भी फहरा दिया !!
'सन्देश' भी सुन लिए !!!
झांकियां भी निकल गयी !!!!
और मिठाई भी बंट गयी........,
एक और
''सरकारी-रस्म'' निपट गयी !!
आईये,फिर मिल-बैठ कर
देश को 'खाएं,
ग़रीब को
'कंगाल' बनायें,
'स्विस' में धन
जमा कराएं,
'वादों' की
घुट्टी पिलाएं !
'तंत्र' का यही
'मूलमंत्र है,
अहा !
मेरे देश में
कितना सुन्दर
(गण) 'तंत्र' है !! 
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मंगलवार, 25 जनवरी 2011

!! वजूद !!

****** *!! वजूद !! ******
''सूरज'' की चाहत है
वो 'रात' को निहारे !
''रात'' की चाहत है 
वो 'सूरज' का दीदार करे !!
मगर दोनों के लिए 
ये मुमकिन नहीं !!
अच्छा है.....
शायद ये ही अच्छा है...
दोनों ही के वजूद के लिए !!!

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 पुनमिया *******

!! गणतंत्र- 2 !!

******* !! गणतंत्र- 2 !!*******
गणतंत्र में 'गण'
हासिये पर पडा है,
और 'तंत्र'
सर पे चढा है !
सबसे निचे की 
पायदान पे खड़े
'गण' को
रोटी-कपड़ा-मकान 
तो क्या,
मयस्सर नहीं है
टमाटर और प्याज !
और तंत्र के सिर-मौर , 
करके अरबो-खरबों के घोटाले
ठोंक कर सीना 
कर रहे हैं राज़ !!
प्रजा है 
बिखरी-बिखरी सी,
चोरों,बेईमानों,गुंडों का
संगठित गिरोह बहुत बड़ा है !
गणतंत्र में 'गण'
हासिये पर पडा है,
और 'तंत्र'
सर पे चढा है ! 
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बुधवार, 19 जनवरी 2011

!! मन की व्यथा !!

दोस्तों,
आज मैं आप सभी के साथ अपने मन की व्यथा साझा करना चाहता हूँ.
आशा करता हूँ आप अपने अमूल्य समय मेसे कुछ लम्हें मुझे बख्श कर 
कृतार्थ करेंगे.इसी आशा के साथ......

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जब से रूठ कर गयी हो तुम 
मुझे ना ही रातो में चैन है,
ना ही दिन में सुकून है !
बस हर लम्हा
हर हाल में 
तुम्हें पाने का जुनून है !
आखिर मुझसे
खता क्या होगयी ?
जो तुम यूँ अचानक
बिन बताए
मुझसे दूर,
मुझसे जुदा हो गयी !
मैं मानता हूँ
अपनी व्यस्तता के चलते
मैं
तुम्हारे हिस्से का
जायज़ हक
तुम्हें नहीं दे पाया ,
समय पर
तुम्हारी सुध
नहीं ले पाया .
लेकिन
इस खता की
इतनी बड़ी सज़ा...?!
तुम्हें कैसे बताऊँ !,
कैसे समझाऊं !,....
तुम्हारे रूठ कर
चले जाने से
मेरे दिन,
मेरी रातें,
बहुत पीछे
छूट गयी है....,
मेरे 
सारे ख़्वाबों की लडियां
बिखर गयी है,
टूट गयी है..... .
एक
तुम्हारे ना होने से
जिंदगी
बेमजा हो गयी है,
बेचैनी भरे दिन
और
करवटों भरी रात
मौत से भी बड़ी
सज़ा हो गयी है.
मुझे ग़म है
तो बस
इस बात का,
कि
तुमने
ज़रा भी ख्याल
नहीं रखा 
इतने पुराने साथ का.
मैंने हमेशा
तुमसे मुहब्बत की है,
तुम्हें कभी भी
तन्हाईयाँ नहीं दी है.
हाँ,
ये मुमकिन है
कि
जिंदगी ने जब भी
मेरा इम्तेहान
लिया होगा,
मैंने
ना चाह कर भी तब 
कुछ समय के लिए
तुम्हें अपने से
दूर किया होगा .
मेरी जब -जब भी
तुमसे दुरी रही होगी ,
मेरी
कोई ना कोई
मज़बूरी रही होगी.
लेकिन तुम्हारी
क्या मज़बूरी है...?
क्यूँ मुझसे
इतनी दुरी है ...?
चलो 
मैं अपनी
हर खता के लिए
तुमसे माफ़ी
मांग लेता हूँ,
सारे इलज़ाम
ख़ुशी-ख़ुशी
अपने सर लेता हूँ .
गुजारिश है तुमसे
मुझे अब
और मत तडपाओ,
जल्दी ही तुम
लौट आओ.
मेरे दिल का
चैन-ओ-सुकून
मुझे लौटा दो,
मेरे ख़्वाबों की  लडियां
तुम वापस जोड़ दो,
करवटें बदलते हुए
गुज़रती हुयी
मेरी रातों का सिलसिला
अब तोड़ दो.
तुम लौट आओ..........

तुम लौट आओ................
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तुम लौट आओ........................
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तुम लौट आओ
मेरी ''नींद''!
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मंगलवार, 18 जनवरी 2011

!! झटका !!

******** !! झटका !! ********
पुरे हिन्दुस्तान में
सिर्फ ''नेता'' ही
माला-माल है,
बाकी पब्लिक के
तो बस
बुरे हाल है 
खाने में
ना प्याज है,
ना टमाटर है,
ना ही दाल है!!
बिना बिजली के भी
'आम हिन्दुस्तानी' इतने
'झटके' खा कर भी
ज़िंदा है,
क्या ये कोई
कम कमाल है !!!
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शनिवार, 15 जनवरी 2011

!! मन की बात !!

******************** !! मन की बात !! ********************
आज शाम को मैं एक रेलवे स्टेशन पर था.
सहसा मैंने देखा कि वहां लोग,3 भेड़ों को घसीट कर ले जा रहे हैं.
भेड़ें चलने को तैयार नहीं थी,शायद उन्हें भी अपनी 'मौत' का आभाष हो गया था! 
वे भेड़ें कान पकड़ कर,पाँव पकड़ कर घसीटी जा रही थी!
मेरा मन द्रवित हो उठा,लेकिन मैं कुछ भी कर ना सका !
मूक प्राणियों के साथ ऐसा बर्ताव क्यों......?
मैं अब भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि ऐसी स्थिति  में आखिर करना क्या चाहिए? 
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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

!! अपनों के नाम !!

****** !! अपनों के नाम !! ******
गले मिल,हाथ मिला,
गुल मुहब्बत के खिला.
तन्हा-तन्हा जीना छोड़,
मिलने का रख सिलसिला.
हर खता को माफ़ कर,
भूल जा शिकवा-गिला.
गुस्से से क्या होगा हासिल ?
गुस्से से मत तिलमिला.
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!! मकर संक्रांति !!

****** !! मकर संक्रांति !!******
इन्द्रधनुषी रंग है,
आसमां में पतंग है,
तिल के व्यंजन संग है,
मन में बहुत उमंग है,
छत पर धूम-धडाका-
और नीचे घर में 
शान्ति है.........,
आज 
'मकर - संक्रांति'  है.

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सभी मित्रों को ''मकर - संक्रांति '' पर हार्दिक शुभकामनाएं .
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