कि आपने जो कविता लिखी है
उसे हर ''गधा''
बड़े चाव से
पढ़ रहा है,
और आश्चर्य की बात है
कि खुद को
''गधा'' भी नहीं समझ रहा है !
मैंने कहा-
''गधे'' होते ही ऐसे हैं!!
''गधे'',गधे होते हुए भी
खुद को
''गधा'' नहीं समझ पाते हैं,
और आगे से आगे मेरी कविता
पढ़ते ही चले जाते हैं!!
वो बोला--
हाँ,मैं भी देख रहा हूँ
कि हर ''गधा''
बड़े चाव से
आपकी कविता में
खो रहा है,
और जो आधा ''गधा'' था
वो पूरा,
और जो 'आलरेडी'
पूरा गधा था
होली के दिन वो
डबल ''गधा'' हो रहा है !!!
***************************
!!!! होली पर मेरे सभी मित्रों-पाठकों को शुभकामनाएं !!!!
*************************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें