रविवार, 27 मार्च 2011

!!!.मेलों का मौसम.!!!


!!!.....मेलों का मौसम..... !!!

*************************

आज-कल गाँव में 

मेलों का मौसम है !

शहरों की 

रेलमपेल से
थक गए हो 'गर,
तो लौट के आ जाओ
गाँव में 
कुछ दिनों के लिए !
'माता जी' के
मंदिर के पास 
लगा है मेला
झूले हैं,
कुल्फी है,
टमाटर-ककड़ी है,
गुब्बारे हैं,
बांसुरी है,
तमंचा है, 
पांच-दस वाले खिलोनें भी है !
सख्श एक
चला रहा है ''घेरे'' में 
साइकिल !
और दो-दो रूपये में 
'तमाशा' भी 
दिखाया जा रहा है !
पकोड़े,
जलेबी,
पेठे,
इंतज़ार में हैं आपके !
कि जीना हो जो 
बचपन अपना
दुबारा,
तो लौट आओ गाँव में 
की आज-कल 
गाँव में 
मेलों का मौसम है ! 
****************************
**************************** 
नदियाँ सूखी, नाले सूखे, सूखे झील-तालाब !
अब भी 'गर हम ना चेते तो 'पानी' होगा ख़्वाब !! 
****************************

!! आज रविवार है !!


!!........ आज रविवार है ........!!

चैन-ओ-सुकून की दरकार है ?!

तो आज रविवार है !!

आराम कीजिए,

आनंद लीजिये,

जिंदगी की आपाधापी को --
थोड़ा सा विराम दीजिए !
आप इसके लिए तैयार है ?!
तो आज रविवार है !!
बीबी को घुमाइए,
बच्चों को संग ले जाइए,
अच्छी कोई फिल्म दिखा कर --
होटल में 'डिनर' खिलाइए !
क्या आपका भी यही विचार है ?!
तो आज रविवार है !! 
********************** 
नदियाँ सूखी, नाले सूखे, सूखे झील-तालाब !
अब भी 'गर हम ना चेते तो 'पानी' होगा ख़्वाब !!  **********************

गुरुवार, 24 मार्च 2011

यही तरिका है

****** यही तरिका है... ******
खोया वही 
जो पाया था !

पाया वही 
जो अपने पास 
था नहीं !!

जो अपने पास 
था ही नहीं,
उसको पाया,
वो अगर 
खो गया,
तो क्या होगया !

फिर पायेंगे,
फिर खोएंगे,

फिर-फिर पायेंगे,
फिर-फिर खोएंगे !

पायेंगे...
खोएंगे....
पायेंगे......
खोएंगे.......
पायेंगे.........
खोएंगे..........!!

जिंदगी भर 
चलता रहेगा 
यही.....
आखिर हम 
कब तक रोयेंगे.... ?!!

पाते हैं 
तो
स्वीकार कीजिए !
खोते हैं 
तो
सहज लीजिये !! 

जीने का  
यही तरिका है,
चैन से 
वही जिया 
जिसने ये 
सिखा है !!!
******************

रविवार, 20 मार्च 2011

/// होली ///

****** होली है ******  
 एक पियक्कड़ ने
होली के दिन
कुछ ज्यादा ही चढा ली
और गिर गया गटर में !
हाथ टूटा,पैर मुडा
और चोट आई कमर में !!
पास ही में
चलते हुए
राहगीरों ने
उसे उठाया,
और नजदीक के
अस्पताल में
पहुंचाया.
डाक्टर ने
देख कर कहा--
''भैया
'टूट-फूट' ज्यादा है
क्या तुम्हारे पास
'दवा-दारु' के
पैसे हैं ?"
पियक्कड़ बोला--
''डाक्टर साहब
आप भी
 कैसे हैं !?
ये दस रुपये लीजिये,
दवा की मुझे
 ज़रूरत नहीं,
आप तो बस
''दारु'' पीला दीजिये !!! 
*********************************
// सभी मित्रों को होली पर रंग-बिरंगी शुभकामनाएं  //
*********************************



शनिवार, 19 मार्च 2011

!!!! बुरा ना मानों होली है !!!!


होली पर मेरे सभी मित्रों-पाठकों को समर्पित है ये 'होलीमय' कविता.
कृपया इसे अन्यथा ना लें,होली का ही एक रंग समझ कर इसे स्वीकार करें.
अपने तमाम वरिष्ठ,हमउम्र,एवं छोटे मित्रों-पाठकों को सादर समर्पित है ये होली का एक रंग मेरी तरफ से.
क्षमा याचना सहित......!
--अशोक पुनमिया
*************************************
!!!! बुरा ना मानों होली है !!!!
एक गधा
मेरे सपने में आया,
और उसने मुझे
.ये बतलाया--
कि आपने जो कविता लिखी है
उसे हर ''गधा''
बड़े चाव से
पढ़ रहा है,
और आश्चर्य की बात है
कि खुद को
''गधा'' भी नहीं समझ रहा है !
मैंने कहा-
''गधे'' होते ही ऐसे हैं!!
''गधे'',गधे होते हुए भी
खुद को
''गधा'' नहीं समझ पाते हैं,
और आगे से आगे मेरी कविता
पढ़ते ही चले जाते हैं!!
वो बोला--
हाँ,मैं भी देख रहा हूँ
कि हर ''गधा''
बड़े चाव से
आपकी कविता में
खो रहा है,
और जो आधा ''गधा'' था
वो पूरा,
और जो 'आलरेडी'
पूरा गधा था
होली के दिन वो
डबल ''गधा'' हो रहा है !!!
***************************

!!!! होली पर मेरे सभी मित्रों-पाठकों को शुभकामनाएं !!!!
*************************************

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

''होली-2''

******** ''होली''********
जब आई होली, 
तो मुझसे 
मेरी बीबी 
सुझाव देते हुए 
.बोली--
"अजी 
अपने टी.वी.
पर भी
कुछ हरे-पीले
रंग चढा दो,
शुरू से 
'ब्लेक एंड व्हाईट' 
पडा है,
अब तो इसे 'रंगीन'
बना दो !!"
************************
!!!! सभी दोस्तों को ''होली'' पर अग्रिम शुभकामनाएं. !!!!
************************ 

शनिवार, 5 मार्च 2011

!! जिम्मेवार हम है !!

****** !! जिम्मेवार हम है !! ******
फुटकर है खुशियाँ
थोक में ग़म है!
.इन स्थितियों के
जिम्मेवार हम है !!
मयस्सर थे सुख जहां
वहां हम रुके नहीं,
सुकून पडा था जहां,
उठाने को हम झुके नहीं !
दुःख दे रहा है ''वो''
बड़ा ये वहम है,
फुटकर है खुशियाँ
थोक में ग़म है!
इन स्थितियों के
जिम्मेवार हम है !!
भूख जो 'इंसान' की है
उसका कहाँ अंत है ?
'पतझर' का ही रोना रोता
घर में चाहे 'बसंत' है !
चमक-दमक बाहर बहुत
भीतर गहरा 'तम' है,
फुटकर है खुशियाँ
थोक में ग़म है!
इन स्थितियों के
जिम्मेवार हम है !!
**********************