गुरुवार, 31 मई 2012

!!अकड़ती लू,नाराज़ परिंदे !!

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.......हमारे यहाँ अघोषित कर्फ्यू लगा है !
.......सुबह के 11 बजे से शाम के 6 बजे तक घर से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाना बड़ी बात हो गई है ! पारे ने 45-46 पर डेरा जमा रखा है ! लू के थपेड़ों से,पिचके हुए गालों पर भी 'लालिमा' आ गई है,और सरकार को मुगालता हो गया है कि अब सभी खाते-पीते है...कोई भी भूखा नहीं है ! 
......रात को अपने घर जा कर सोया हुआ 'सूरज' निरंतर गर्म साँसे छोड़ रहा है ,'रात' बैचेन है, क्योंकि सवेरे फिर सूरज त्योरियां चढाते हुए ही निकलने वाला है,और रात भर जागी हुई रात को दिन में भी सुकून नहीं मिलना है !!   
......चाय की थडियों पर चूल्हे ठण्डे पड़े हैं,भगोने औंधे मुंह तिरस्कृत से हैं,चाय की पत्ती उबाले जाने के इंतज़ार में रुआंसी सी हैं और शक्कर अलग-थलग पड़ी खुद को ही कडवा मह्सूश कर रही है! कुल्हड़ अपने कद्रदानों के मुंह लगने को बेताब से हैं और थडी वाला माथे पर सलवटें डाल चिंतित सा बैठा है ! गर्मी,प्राणियों को कपडे की तरह निचोड़ने को आमादा है !!
......दूसरी तरफ छाछ,लस्सी और गन्ने के रस की बन  आई है,पसीने से तरबतर लोगों के लबों से लग ,हलक में उतर कर जैसे उन्हें मोक्ष मिल गया है !!
......'लू ' की अकड़ती चाल को देख कर बागानों में पोधों ने कलियों को अपने आगोश में छुपा लिया है,और फूलों  ने मिटटी में गिर कर पनाह मांग ली है ! टहनियों पर लटकती खुशहाल पत्तियों के मुंह गर्म हवा के चांटे खा-खा कर लटक से गए हैं !
......तपते मौसम से नाराज़ परिंदों ने हड़ताल कर दी है,और मांग रख दी है कि जब तक बादल,बारिशों को काँधे पर बिठा कर हमारे आँगन में नहीं आते,हम दिन में परवाज़ नहीं भरेंगे !
.......धरा की धूल ने,उन्मुक्त बहती हुयी गर्म हवाओं के साथ मिल कर साज़िश रची है लोगों से जबरन 'होली' खेलने की ! विज्ञान के बल पर इठलाता इंसान इस साज़िश को आँखे बंद किये हुए चुपचाप खडा देखने को विवश है !!   
......यह स्थिति कब बदलेगी कहा नहीं जा सकता ! जून के महीने के अभी पुरे तीस दिन बचे हैं,केलेंडर यह दिखा-दिखा कर डराए जा रहा है !
......कुल मिला कर बात थोड़ी सी अजीब है,मगर इस 'गर्मी ' ने सबको 'ठंडा' कर रखा है !!!
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बुधवार, 30 मई 2012

!! सादर श्रृद्धांजलि-18 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-17 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-16 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-15 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-14 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-13 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-12 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-11 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-10 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-9 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-8 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-7 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-6 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-4 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-4 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-3 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-2 !!


!! सादर श्रृद्धांजलि-1 !!


















मंगलवार, 29 मई 2012

!! लोकतंत्र के बहुरुपीये !!

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......उत्तर प्रदेश की विधान सभा में बीते कल घमासान हुआ ! हालांकि इसमें ऐसा कुछ भी ऐसा नहीं है जो कि वहां पहले कभी नहीं हुआ हो ! बल्कि इससे भी भीषण द्रश्य वहां की विधानसभा में पहले भी कईं बार उपस्थित हो चुके हैं.और इसी कड़ी में उत्तरप्रदेश का राजनैतिक चरित्र देखते हुए यह भी सहज ही कहा जा सकता है कि कल की 'महाभारत' भी कोई अंतिम नहीं थी !
......जनता के चुने हुए जन प्रतिनिधियों ने राज्यपाल महोदय पर कागज़ के गोले बना कर फेंके ! अब सोचने वाली बात ये है कि विधान सभा,जिसमे कि सुरक्षा का बंदोबस्त भी होता है,और जहां 'केमरे' की आँख भी सब निगरानी करती है,वहां पर भी कागज़ के गोले बना कर फेंकने वाले 'पराक्रमी' लोग विधान सभा के बाहर क्या नहीं करते होंगे ! यदा-कदा आदरणीय जन-प्रतिनिधियों के बारे में आने वाली ह्त्या,लूट,बलात्कार की ख़बरों पर,इस तरह का आचरण देख कर,विश्वास नहीं करनेका कोई कारण समझ में नहीं आता !
......मजेदार बात तो ये है कि 'बी एस पी' के एक नेता जी वर्तमान सरकार पर जो तमाम तरह के आरोप लगा रहे थे,जब उनकी सरकार थी,ये ही आरोप उन पर भी लगते थे ! अब सरकार चाहे समाजवादी पार्टी की हो या बी एस पी की,उतरप्रदेश में दोनों का चरित्र कैसा रहा है,यह किसी से भी छुपा नहीं है ! ''हाथी'' वालों ने 'हाथीनुमा' घोटाले करने में कोई कसर नहीं छोड़ी,तो ''समाजवादियों'' ने जेल की हवा खा चुके एक एक 'जनप्रतिनिधि' को 'जेल' का महकमा सौंप कर सच्चा'समाजवाद' लाने में अपनी प्रतिबद्धता दिखला दी !
.......इस सब तमाशे में बेचारी जनता सर पकड़ कर बैठी है और सोच रही है कि आखिर 'सांपनाथों और नागनाथो' से पीछा कब छूटेगा ! सत्ता पर पालथी मार कर बैठे हुए धनबली और बाहुबली मिल बाँट कर सत्ता सुख भोग रहे हैं और जनता भूख-गरीबी-भ्रष्टाचार में पिसती ही जा रही है !
......इधर,सत्ता में बैठ कर धमाचौकड़ी मचाने वाले कईं महामहिमों पर ''टीम अन्ना'' ने ऊँगली उठायी है,जो सच के काफी करीब दिखती है ! घपलों-घोटालों और सत्ता के मद में चूर लोगों का अटूट रिश्ता है.उत्तर प्रदेश में सभी जानते हैं ''हाथी'' कितना खा गया....अब देखने वाली बात ये होगी कि ''साईकिल'' कितना कुछ लेकर 'रफूचक्कर' होती है ! यही हाल हर राज्य के सत्ताधीशों का है !
......अभी परसों ही एक नामचीन 'नेताजी' के नामचीन 'सुपुत्र नेताजी' को सी बी आई ने काफी जद्दोजहद के बाद धर दबोचा ! देश के धन को 'बाप का माल' समझ कर तिजोरी भरने का परिणाम है ये ! 'टीम अन्ना' के कहेनुसार अगर प्रधानमन्त्री जी अपने मंत्रियों की जांच करवा दें तो 'सलाखों' के पीछे कईयों का नंबर लग सकता है.....! जिस दिन जांच करवाने से'कतराने' और 'लीपापोती' करने पर अंकुश लग जाएगा,अधिकाँश स्वयंभू भारत भाग्य विधाता, सफेदपोश जन-सेवक,लोकतंत्र के बहुरुपीए,कुर्सी-प्रेमी,देशखाऊ.....''महानुभाव''अपनी 'असली जगह' को प्राप्त हो जायेंगे,और संसद से लेकर विधान सभाओं तक में 'जन-प्रतिनिधियों' का टोटा हो जाएगा !!
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रविवार, 27 मई 2012

!! सफेदपोश लुटेरों को सादर-'श्रृद्धांजलि'!!





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होना था जिनको
हवालात में !
सत्ता है आज
उनके ही हाथ में !!
लुटेरे-बेईमान
राज़ कर रहे,
देश के शुभ-चिन्तक
भूखे मर रहे,
घोड़ा बन कर
देश का रथ
आगे ले जाना था जिनको.....,
''गधे'' बन कर वो ही
इस देश को चर रहे !!
बेटों को बाप से
कुर्सी मिल रही
सौगात में !
होना था जिनको
हवालात में !
सत्ता है आज
उनके ही हाथ में !!
खूब खा लिया
और ना जाने
कितना खायेंगे..,
सोने की चिड़िया को
और कितना
लूटेंगे,लुट्वायेंगे...!!
होंगे कैसे फेसले
जब 'चोर' ही
अदालत चलाएंगे !!
कर्तव्य टाँगे
खूंटी पर,
अधिकार ले लिए
हाथ में !
होना था जिनको
हवालात में !
सत्ता है आज
उनके ही हाथ में !!
'कनि'-'माडी'
'राजा',
बजा गए 
देश का बाजा !
छुट्टी हुई जेल से,
खुला सत्ता का दरवाज़ा !!
चेले-चमचे 
नाच रहे 
'चोरों की बरात' में',
होना था जिनको
हवालात में !
सत्ता है आज
उनके ही हाथ में !!
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शनिवार, 26 मई 2012

!! इ खून बहुत महँगा है रे बाबा !!

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......देश में भूख,गरीबी,भ्रष्टाचार और नेताओं की 'मारक' नीतियों से आम इंसानों का खून बहते देख मुझे लगा था कि अब इंसानों के खून की कीमत कुछ भी नहीं है ! किन्तु अपने खून के  प्रति एक स्वनाम धन्य नेता जी का प्रेम देख कर मुझे पुनः लगने लगा है कि खून की कीमत ज़रूर है....बल्कि बहुत ही ज्यादा है,इसी लिए ये 'वरिष्ठ' नेता जी 'दो-चार' बूंद 'खून' की देने के लिए भी तैयार नहीं है ! अब तो हालत ये है कि कोर्ट-कचहरी को कहना पड रहा है कि इन नेताजी के घर जा कर उनका 'अमूल्य' खून लाया जाए!
......एक समय था जब कि आदरणीय 'सुभाष चन्द्र बोस' जैसे इस देश के महान सपूत नारा ही ये दिया करते थे कि ''तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" आज भी कईं नेता इस देश के लिए जोर-शोर से अपना खून तक दे देने की डींगे हांकते रहते हैं,लेकिन जब वास्तव में 'खून' देने का समय आता है तो मुकर जाते है ! अब इन 'वरिष्ठ नेता जी' को ही देख लीजिये,कौनसा उनके खून को निचोड़ डालने की बात थी....देना तो कुछ बूंद भर है,लेकिन फिर भी 'नानी' याद आ रही हैं ! ये आखिर कैसा खून हैं ? इस खून की इतनी कीमत कि दो-चार बूंद के लिए कोर्ट-कचहरी-पुलिस.....तक को बीच में आना पड़ रहा है,जबकि इस देश का आम इंसान भ्रष्टाचार के महारथियों के समूह द्वारा पूरा का पूरा अंतिम बूंद तक निचोड़ा जा रहा है.....और कोई भी कुछ नहीं बोल रहा ! इस से साबित होता है कि इन 'हट्टे कट्टे' पुराने 'घाघ नेताओं' के खून में ज़रूर तो कुछ ना कुछ 'विशेष' है,वरना दो-चार बूंद के लिए इतनी आनाकानी क्यूँ ? 
......बेशक वो खून भी लाल रंग का ही होगा,लेकिन फिर भी उस खून की तासीर कुछ तो अलग ही होगी ! हो सकता है कि उस खून ने दूसरों को 'आज़ादी' देने के बजाय  स्वयं 'नेताजी' को इतनी 'आज़ादी' दी हो कि वे 'आज़ादी' का 'मजा' खुले मन से लूट सके ! संभावनाएं अनंत है ! अब इस अनमोल खून का सच तो तभी सामने आयेगा जबकि नेताजी दो-चार बूंद खून देने को राजी हो जायेंगे. 
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शुक्रवार, 18 मई 2012

!!अगले जनम मोहे 'काम वाली बाई' ही कीजो!!

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.......जी नहीं.....अपुन का मगज खराब नहीं हुआ है....!न ही अपुन का भेजा फिरा है!!और ठर्रा तो अपुन पीता ही नहीं,इस लिए बहकी-बहकी बात करने का भी सवाल ही नहीं!!!ये महान ख्याल अपुन के दिल में ऐसे ही नहीं आ गया.अगर ऐसे ही आ जाता तो आप ला के दिखाईये....आया क्या ? नहीं ना! 
.......अजी लोगों के दिल में टाटा,अम्बानी,बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग....या  ऐसा ही कोई बड़ा आदमी बनने का ख्याल आता है,लेकिन अपुन को तो अगले जनम में काम वाली बाई ही बनना है!
.......अब अगर घर में बीबी का प्यार नहीं मिले,तो क्या  टाटा,अम्बानी,बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग....   और क्या कोई और!बीबी की मुहब्बत पति के हर ज़ख्म पर मरहम लगा देती है,और बीबी से लतियाया हुआ पति इस लोक और पर लोक,कहीं पर भी चैन नहीं पाता है!
.......दूसरों की क्या कहूँ.... अपनी खुद  की कहूंगा तो आपको भी अपने आप ही की लगने लगेगी! 
.......आज-कल पत्नियों को संतोष कहाँ ! 
.......'पास वाले शर्मा जी इतना कमा रहे हैं'.....और 'दूर वाले वर्मा जी भी नोट छाप रहे हैं'! 'एक तुम हो कि वहीँ के वहीँ अटके हुए हो ! शादी के बाद नाक का एक लोंग दिला दिया होता हो पछतावा नहीं होता.....मुझे साडी ला के दी कभी, याद आता  है क्या.....? गुप्ता जी तो हर साल ऊंटी-मसूरी घूमने ले जाते हैं 'मिसेज गुप्ता' को,मुझे पास के महादेव  जी के मंदिर  के और कही ले गए क्या....!
.......दफ्तर से कभी जल्दी घर आ जाओ तो शब्जी काटने से लेकर छोटे-मोटे बर्तन धोने तक का काम अपुन के ही जिम्मे आ जाता है ! वैसे भी 'सन्डे' को अपना आधा दिन साफ़-सफाई,कपड़े धोने,चाय बनाने,खाना बनाने में 'हेल्प' करने में जाता है,क्योंकि 'बीबी' की नज़र में एक वो ही तो दिन है जब कि वो 'रेस्ट' कर सकती है ! कहने का मतलब एक पति के लिए,पत्नी द्वारा  लतियाए जाने के तमाम कारण घर में हर समय मोजूद है ! ऐसे में बस इच्छा होती है कि प्रभु मुझे तो अगले जनम में 'काम वालो बाई' ही बनाए ! क्यों कि काम वाली बाई पर श्रीमतीजी का उमड़ता हुआ प्यार देख कर अपने पति होने पर बेहद अफ़सोस होता है ! 
.......मैं ऑफिस से घंटों देरी से आऊं तो भी मेरे हाल-चाल जानने  के लिए एक भी फोन नहीं करने वाली बीबी,काम वाली बाई के दस मिनिट लेट हो जाने पर बीस फोन कर देती है ! मेरे एक कप  चाय मांगने पर चिल्ल -पों मचा देने वाली बीबी काम वाली बाई के घर में प्रवेश करते ही चाय और बिस्कुट से स्वागत करती है ! जब तक काम वाली बाई घर में काम करती रहती हैं,मुझसे भोंहें चढ़ा कर बात करने वाली बीबी के मुंह से मधुर भाषा के झरने फूटते रहते हैं.....! काम वाली बाई के पुरे खानदान के हालचाल जानने के साथ साथ तमाम तरह की मिन्नतों का भी दौर अनवरत चालु रहता है ! पत्नी द्वारा बोले गए 'ध्यान से जाना और कल जल्दी आ जाना' जैसे जुमलों से कामवाली बाई मालामाल होती रहती है,और पति नाम के निरीह प्राणी की  बेचारगी मेरे सामने आ कर खड़ी हो जाती है ! 
.......अब ऐसे में आप सोचो कि क्या 'कामवाली बाई' हो जाना ज्यादा अच्छा या कि एक 'बेचारा' पति! अपुन तो उपरवाले को अगले जनम में अपुन को 'काम वाली बाई' बनाने का ही 'अप्लिकेशन' दे चुका है.....आपका क्या ख्याल है ?!!
चेतावनी :यह आलेख सच्ची घटनाओं को झूठ मान कर प्रस्तुत किया गया है!
अधिकाँश 'पति' पाठकों को इस आलेख में अपनी आपबीती नज़र आ सकती है.....यह महज़ एक संयोग नहीं है...!!इसके लिए लेखक किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है !!!
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गुरुवार, 17 मई 2012

??? कब जागेगा देश ???


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.......शहरों में पनपा 'सिंथेटिक दूध' अब गाँवों-कस्बों में भी धड़ल्ले से बिक रहा है !निगरानी रखने वाला विभाग जानते-बूझते हुए भी निष्क्रिय है !सुबह का पहला घूंट 'ज़हर'के रूप में लोगों के शरीर में पहुँच रहा है,और बच्चे 'दूध' के रूप में बीमारियाँ गटक कर 'बीमार भविष्य' की और धकेले जा रहे हैं.
.......लालच के धंधे ने इंसान को मौत का सौदागर बना दिया है.ये सारा सच किसी से भी छुपा नहीं है...,लेकिन सभी तमाशा देखने में शामिल है.जिम्मेदार लोग एकाध बार,दिखावे के लिए एकाध 'दूधिये' पर छापामारी करते हैं.....उसका दूध गिरा देते हैं....और दुसरे दिन से 'दुधिया' फिर अपने 'सुकर्मों'में लग जाता है.....'जिम्मेदार' लोगों की जेबे गर्म होती रहती है......लोगों के शरीर में ज़हर घुलता रहता है.....!! 
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.......गर्मी का मौसम शुरू हो गया है.....!
.......गाँवों-कस्बों तक में 'मेंगोशेक' के ठेले कुकुरमुत्तों की तरह उग आये है...!
.......पांच-दस रुपये में एक आम या गिलास भर दूध मिलना भी मुश्किल है,और ये ठेले वाले पूरा गिलास भर 'मेंगोशेक' इतने रुपये में ही बेच रहे हैं !
.......'शुद्ध के लिए युद्ध' की रणभेरी बजाने वाले सरकारी खाद्ध्य विभाग के 'रणबांकुरे' ना जाने कहाँ मुफ्त का 'मेंगोशेक' पी कर लम्बी तान कर सो रहे हैं !! लगता है इन रणबांकुरों की आत्मा को 'मेंगोशेक' से ठंडा,और जेब को 'गरम' कर दिया गया है !!
.......खतरनाक रासायनिक पदार्थोयुक्त इस ''मेंगोशेक' की असलियत पहले भी कईं बार खुल चुकी है,लेकिन ये भारत है.....यहाँ किसी के भी 'पेट' पर लात मारना 'पाप' है,चाहे वो ओरों के 'पेट' और 'जिंदगी' के साथ खिलवाड़ ही क्यूँ नहीं कर रहा हो !!!
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.......झोलाछाप डाक्टरों का जाल गाँवों-कसबों से लेकर शहरों तक फैला हुआ है !स्वस्थ हो कर जीने की आस लिए इन झोलाछाप डाक्टरों के पास आने वाला यहाँ 'सस्ते' में 'मौत' पा रहा है !'प्लस' का निशाँ लगाए बैठे ये 'झोलाछाप डाक्टर' नादाँ लोगों की जान की कीमत पर 'नोट कूटने' में लगे हुए हैं ! सरकारी स्वास्थ विभाग सभी जगह 'नींद की गोलिया' गटक कर सो रहा है ! उसे इंतज़ार है किसी नादाँ इंसान के मरने का,ताकि तब शायद शिकायत आये और उसे मज़बूरी में कोई कार्यवाही करनी पड़े !
.......मौत के इस कारोबार में जिम्मेदार लोगों को भी भरपूर 'टोनिक' मिल रहा है.....किसी की जान की कीमत पर....!! सरकार ने तनख्वा-भत्ते देने और सालो साल बढाते जाने की निति बना दी,'जिम्मेदार' किसी को भी नहीं बनाया....मिलबांट कर 'मलाई' खा-खा कर सब 'जिम्मेदार' लोग मुटिया रहे हैं और हिन्दुस्तान के आम इंसान की जान पर बन आई है......!!
??? कब जागेगा देश ???
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मंगलवार, 15 मई 2012

!!गाय का इंतज़ार !!


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.....दोस्तों एक मजेदार बात आपसे शेयर कर रहा हूँ.
.....ऐसी बातें मैनें कईं बार लोगों से सुनी थी,किन्तु इसका कभी प्रत्यक्ष अनुभव नहीं हुआ था,लिहाजा ऐसी बातों पर कभी गौर किया ही नहीं!
.....पिछले लग भग दो महीनों से एक 'गाय' प्रतिदिन मेरे घर के पिछले दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है,और हमारे यहाँ से उसे रोटी या उसके ही जैसा कुछ जब खाने को मिल जाता है तो लौट जाती है !शुरू-शुरू में तो मुझे लगा की गलती से कोई गाय पिछले दरवाज़े से टकराई होगी....लेकिन ये घटना जब प्रतिदिन घटने लगी तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा!!कमाल ये,कि घर के पिछ्ले दरवाज़े पर ये गाय बिलकुल वैसे ही दस्तक देती है जैसे कोई इंसान आकर देता है !
.....अब तो मेरे घरवालों को भी आदत सी हो गयी है......उस गाय का इंतज़ार भी रहता है.......और वो भी हमें निराश नहीं करती है....!!!
.....आप क्या कहेंगे इस बारे में ?????
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सोमवार, 14 मई 2012

!! भगवान भरोसे रेल यात्री !!


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.......... रेल मंत्रालय समय-समय पर रेल भाडा बढाने में कोई कोताही नहीं करता,क्योंकि उसे घाटे से उबरना होता है और रेल यात्रियों की सुविधाएं बढानी होती है.लेकिन कमाल की बात ये है कि साधारण टिकिट और स्लीपर क्लास में यात्रा करने वाले हमेशा से ही कष्टप्रद यात्रा करने को ही विवश रहे हैं ! रेल मंत्री और अधिकारियों की नज़र में केवल उच्च श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्री ही सुविधाओं के हक़दार होते हैं,बाकी के तमाम यात्री तो महज़ भेड़-बकरी हैं,जो ठूंस-ठुंसा कर अपने गंतव्य तक पहुँच ही जायेंगे!
.......... साधारण टिकिट पर यात्रा करने वाले तो किसी तरह की सुविधा मांगने का अधिकार ही नहीं रखते--सरकारी निति तो यही बताती है ! स्लीपर क्लास के यात्री कुछ सुविधा मांग सकते हैं,लेकिन देने की निति सरकार की नहीं होती है ! रेल मंत्रालय का पैसा कमाने  का जुनून ऐसा कि एक बार तो स्लीपर क्लास को 'दबड़े' में ही परिवर्तित कर दिया था ! बोगी में 'साईड' की दो 'बर्थ'को तीन में परिवर्तित करके यात्रियों को 'काल कोठारी' की सज़ा देदी थी,लेकिन बाद में जब हो हल्ला मचा तब, पूरी की पूरी ''राजशाही बोगी'' लेकर ही सफ़र करने वाले अधिकारियों और मंत्री की नींद खुली और यात्रियों को सज़ा से मुक्ति मिली !
.......... अब 'बम्पर' 'वेटिंग' ने 'स्लीपर क्लास' की यात्रा को नरक में परिवर्तित कर दिया है ! 'वेटिंग' का टिकिट लेने वाले यात्री उसे 'कन्फर्म' मान कर ही यात्रा करते है.....और 72 'बर्थ' पर सौ-सवा सौ की भीड़ होना मामूली बात है ! रेल मंत्रालय की तो पाँचों उंगलिया घी में है ! 'स्लीपर क्लास' का आरक्षित टिकिट आपके पास है तो बस आप अपनी सीट पर बैठ भर सकते हैं.....बाद में हिलना-डुलना या शौचालय तक जाना आपके हाथ में नहीं है, क्यों कि 'वेटिंग' वाले,सामान सहित शौचालय के अन्दर से लेकर बाहर तक पसरे रहते हैं ! ऐसे में गुंडों-बदमाशों और चोर-उचक्कों को अपना काम करने में आसानी रहती है,यह भी रेल मंत्रालय की उन के ऊपर मेहरबानी ही है !
.......... सप्ताह भर पहले की बात है.मेरे एक परिचित की पत्नी अपने पीहर वालों के साथ 'स्लीपर क्लास' में यात्रा कर रही थी.रात के लगभग तीन बजे का वक़्त था,वह शौचालय में गयी.शौचालय में पहले से ही घात लगाए बैठे एक 'नकाबपोश' बदमाश ने चाक़ू की नौक पर जान की धमकी देकर उस महिला से तमाम जेवर और जो भी नकदी उसके पास थी लूट ली,और चम्पत हो गया.रेल मंत्रालय द्वारा यात्रियों की सुरक्षा में तैनात किया गया एक भी 'कर्तव्यपरायण सिपाही' कहीं दूर-दूर तक भी नज़र नहीं आया ! लूटी-पिटी महिला इतनी दहशत में थी कि बहुत देर तक बोल भी नहीं पायी.आखिर इस घटना का जिम्मेदार कौन है? क्या रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी सिर्फ टिकिट बेचने भर की है,और उसके बाद मुसाफिर को तमाम तरह के जोखिमों के साथ अपनी जिम्मेदारी पर ही सफ़र करना है ? क्या रेल में तैनात सिपाहियों की ड्यूटी मात्र रेल में 'तफरी' करने और रात के समय 'डंडा फटकारते' हुए मौक़ा देख कर मजबूर यात्रियों से 'पैसा' वसूल करने तक ही सिमित है ? टटपूंजिया नेता और ऐरे-गैरे अधिकारी को दसियों पुलिस की सुरक्षा देने वाली सरकार रेल की एक-एक बोगी में दो-दो-तीन-तीन पुलिस के सिपाहियों को क्यूँ नहीं तैनात कर सकती? और 'स्लीपर क्लास' में 'वेटिंग' वालों को, असीमित भीड़ के रूप में घुसने का अधिकार दे कर यात्रा को नारकीय बना देना कैसी समझदारी है ?
.......... बेतरतीब भीड़-भाड़ में चोर-उच्च्क्कों की बन आती है,और भीड़ का हिस्सा बनने को मजबूर बना दिए गए यात्री माल और जान की जोखिम पर यात्रा करने को विवश है. 'ए.सी.'में बिराजने वाले रेलवे के अधिकारी और मंत्री क्या 'स्लीपर क्लास' और साधारण बोगी में भेड़-बकरियों की तरह,जान-माल को खतरे में डाल कर यात्रा करने को मजबूर यात्रियों की समस्या की तरफ गौर करेंगे ?
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!!माँ तुझे 'रस्मी' सलाम !!

इस चालाक दुनिया में
''माँ'' के लिए 
सिर्फ एक दिन !
बाकी के तीन सौ चौसठ दिन 
'माँ' कहाँ है ??!!
दूसरों के वहां
झाड़ू-पोंछा-बर्तन करती हुई !
बाप की 'बोतल' के लिए 
पैसा जुटाती हुई !!
गोद में बच्चा
और
सर पर तगारी उठाये हुए 
दो वक़्त की रोटी का
जुगाड़ करती हुई !!!
'पति' की सताई हुई......,
'बेटों' से तिरस्कृत.......,
'बहुओं' से डरी हुई......,
'बेटे-पोते-पोतियों' से भरे घर में,
किसी छोटे से कमरे में 
तनहा-लाचार
चुपचाप पड़ी हुई.....,
या फिर 
शहर से दूर 
किसी गाँव में 
अपनी जिंदगी के दिन 
अभावो,तन्हाईयों में
अपने परिवार के लिए 
दुआएं करती काटती हुई......,
'' माँ ''......!!!
ए 'माँ',
तू खुश हो जा
कि आज तेरा दिन है !!! 
इस चालाक दुनिया का 
आज के दिन 
तुझे
'रस्मी सलाम' !!!!!
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गुरुवार, 10 मई 2012

!! एक दिन अचानक...!!

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...........कितना वक़्त हो गया किसी चिड़िया की चीं-चीं सुने हुए ?
और भौंरें की गुनगुनाहट कब सुनी थी ?
बगीचे के किसी दरख्त पर टंगते हुए मधुमक्खी के छत्ते में,मधुमक्खी को मधु इकट्ठा करते हुए कब देखा था ?
क्या गिलहरियों की दौड़ अब भी ताज़ा है ज़ेहन में ?
...........नीम के दरख़्त के निचे शीतल छाया में खड़े होते ही,कौवे द्वारा सर पर बीट कर देने से चोंके हुए कितने दशक हो गए ?
...........और बैलगाड़ी में जूते हुए बैलों द्वारा अपनी मस्ती में झूमते हुए बैलगाड़ी को खींचते देखना तो अब शायद नानी-दादी की कहानियों का एक दृश्य भर ही रह गया है !!!!
...........भागते-भागते कहाँ पहुँच गए हम......????!!...मालूम नहीं....!! मगर मंजिल का भ्रम बराबर बना हुआ...!!!
...........पाने की होड़ में कितना कुछ खो दिया......सब जानते हैं.....लेकिन जानते हुए भी अनजान है.....!!
...........जानबूझ कर अनजान बन जाने वाले इसी दौर में एक दिन अचानक ------
...........पूर्णिमा के एक दिन पहले वाली रात.
...........रात के आठ बजे का वक़्त.
...........अचानक बिजली गुल!
...........मैंने अपने 'लेपटॉप'' को विश्राम दिया,इटरनेट की आभाषी दुनिया से निकल कर, घुप्प अँधेरे को चीरता हुआ अपने बगीचे में पहुँच गया.
...........आसमान से चांदनी बरस रही रही थी.....छिना-झपटी के इस स्वार्थी दौर में भी चाँद,चांदनी को दोनों हाथों से लुटाने पर आमादा सा था....!!
...........एक नज़र अपने बगीचे में डाली तो अवाक रह गया......'कनेर' के सफ़ेद फूल ऐसा आभाष करा रहे थे मानों अभी- अभी कोई पेंटर उनपर सफेदा पोत गया हो.....,और 'रात की रानी' का पौधा जैसे बस अभी 'इत्र स्नान' कर लौटा हो.....!सम्पूर्ण बगीचे पर चाँद की शीतल दुधिया रौशनी की बारिश हो रही थी.......मेरा मन भी भीतर तक इस शीतल-दुधिया रौशनी की बारिश से भीगे बगैर ना रह सका.....!!
...........मै सोचता रहा.....''आखिर अब तक मैं इस अद्दभुत नज़ारें से क्यों अनजान था ???''
...........बिजली का यूँ अचानक गुल हो जाना मेरे लिए सुखद अहसास लेकर आया था.....अँधेरे में भी मुझे एक 'आलौकिक'' रोशनी मिल गई थी,जिससे मैंने भीतर तक उजाला अनुभव किया था....!!
...........आप भी किसी दिन जाने-अंजाने यूँ ही प्रकृति के किसी हिस्से को छू लिज़ीए.....कसम से,रूह सुकूं से तर हो जाएगी.... !!
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शुक्रवार, 4 मई 2012

!! हंगामा है क्यूँ बरपा...!!


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........एक बार फिर 'विशेषाधिकारों' का हनन हो गया है !
........'रामदेवजी' ने वही बात कही जो कमोबेश देश का जन-जन जानता है,और बहुत हद तक कहता भी है ! ('विशेषाधिकारों' के हनन का रोना रोने वाले कभी पब्लिक के बीच जा कर अनुभव कर लें)
........हकीक़त ये है कि लोकसभा और राज्यसभा में कुल मिलाकर लगभग ढाई सौ से ज्यादा जनप्रतिनिधियों पर अपराधिक और गंभीर अपराधिक मामले लंबित है ! जब इस हकीक़त को ही कोई भारतीय रेखांकित कर दे तो फिर 'विशेषाधिकारों' का हनन कैसा?
........'विशेषाधिकारों' के एक हिमायती का कहना है कि लगभग बीस लाख लोगों के वोटों से चुन कर आने वाले सांसद का अपमान करना 'विशेषाधिकारों' का हनन है,लेकिन उन्हें ये कौन बताए कि बीस लाख लोगों के सामने यदि 'सांपनाथ' और 'नाग नाथ' का ही विकल्प हो तो फिर क्या किया जाए ? सच को रेखांकित करने वाली बातों को 'विशेषाधिकारों' का हनन मानने वाले आखिर सच का सामना करते हुए ये क्यूँ नहीं कह पाते हैं कि हाँ संसद में जो दागदार है,जो संसद की गरिमा गिराने वाले हैं,जो संसद में बैठने के काबिल ही नहीं है....उन्हें वास्तव में संसद में लाकर राजनितिक पार्टियों ने भूल की है और उस भूल को सुधारने की आवश्यकता है ! ऐसा कर के ही संसद और सांसदों की गरिमा को,उनके विशेषाधिकारों को बचाया जा सकता है !
........लोकतंत्र में यदि लोगों द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों की संविधान विरोधी हरकतों पर भी चुप रहने की सीख जनता जनार्दन को दी जायेगी तो फिर तानाशाही सिंहासन से आखिर कितनी दूर रह जायेगी ? बेहतर यही है कि जनता को धौंस-धमकी देकर मुंह बंद रखने की सीख देने की बजाय अपने ही गिरेबान में इमानदारी से झांका जाए,ताकि पता चल सके कि आखिर क्यों बार-बार जनता के बीच से ऐसी आवाजें उठती है,जिससे 'विशेषाधिकारों' के हनन का आभाष होता है!
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