बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

!! पते की बात !!

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---------------------------------- पते की बात -----------------------------
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समय बड़ा खराब है ! इस समय 'पते की बात' करना,खतरे से खाली नहीं है ! अच्छों-अच्छों के 'पते',लापता हो रहे हैं ! भारी-भरकम 'पते' वाले कईं कर्णधार किसी डाल से टूटे सूखे 'पत्ते' की तरह जा कर सीधे 'तिहाड़' में गिर गए,तो कुछ का 'पत्ता' कटते-कटते रह गया ! कुल मिला कर इस वक़्त 'पते की बात' करना ही फ़िज़ूल सा लगता है !
आखिर किसे 'पता' था कि 'अन्ना' नाम कि कोई आंधी आएगी और कईयों के 'पत्ते' काट जायेगी ! दिल्ली में सत्ता के 'पते' पर बैठे कईयों के 'पते' कब बदल जायेंगे,क्या कोई कह सकता है ! केंद्र के चुनाव अभी दूर है,लेकिन कईं  कुर्सी भक्तों को अपने लापता होने का अभी से 'पता' चल गया है ! वे इस बात का 'पता' करने में जुटे हैं,कि आखिर हमारा 'पत्ता' काटने वाले का असली 'पता' क्या है ! अगर उन्हें उसका असली 'पता' मिल जाए,तो वे बस एकजुट हो कर उसी का 'पत्ता' साफ़ करने में लग कर सत्ता के बचे-खुचे दिनों को सार्थक कर दें ! अब ऐसी स्थिति में आप ही सोचिये 'पते की बात' कैसे की जाय !
.वैसे भी सत्ता में बैठ कर माल-पुए खाते-खाते कब पांच साल निकल जाते हैं,'पता' ही नहीं चलता ! 'पता' चलता है तो बस इतना कि इन पांच सालों में जो 'लापता' या 'बे-पता' थे,उनका 'पता' राजधानी के बंगलों पर चस्पा हो गया है ! ये अलग बात है कि राजधानी में एक अदद 'पता' रखने वाले भी अपने मोहल्ले,गाँव या शहर में तो 'लापता' ही रहते हैं ! अब ऐसे में 'पते की बात' करना कोई बहुत समझदारी वाला काम नहीं हो सकता !
सच कहूँ तो मुझे कच्चा-पक्का 'पता' ज़रूर चला है कि अगली बार अवाम, राजधानी के बंगलों का 'पता' देने वाले मोहल्ले,गाँव और शहरों के 'पते' वाले,'लापता' लोगों को अपने असली 'पते' पर लाने की ठान चुका हैं ! अब विश्वसनीय तौर पर तो मुझे भी 'पता' नहीं कि दिल्ली में या यूँ कहें कि राजधानी में कितनों के 'पते' बदल जायेंगे,या 'पत्ते' कट जायेंगे,लेकिन इतना अवश्य है कि अवाम को जो 'पता' चला है,वो कईयों को 'लापता' या 'बे-पता' ज़रूर करेगा.अब ऐसे में आखिर 'पते की बात' करके भी क्या फायदा ! 
वैसे मेरा 'पता' यही रहेगा,आप जब चाहें यहाँ तशरीफ़ ला सकते हैं.
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शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

!! कमाल है !!



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कमाल है !
हज़ारों
सवाल है !!
ज़वाब है गिनती के 
और
हाल बेहाल है !!!
कमाल है !
महंगाई ने
कर दिया है
छिन्न-भिन्न,
रोटी के सामने
लग गया है
प्रश्न चिन्ह !
थाली से गायब 
अरसे से ही 
सब्जी-दाल है,
कमाल है !
कैसा दूध !?
कैसी चाय !?
कॉफी ने भी
कह दिया बाय !
घी-तेल पर 
पहले से ही
मचा बवाल है,
कमाल है !
कनिमोड़ी-कलमाड़ी 
कलयुगी राजा,
देश का खूब
बजाया बाजा !
'मनमोहन' के
मंत्री-संत्री
मचा रहे
धमाल है,
कमाल है !
मेहनतकश,
हरामखोरों से
थक गया है,
गरीब का पेट
भूख से
पिचक गया है !
'कुर्सी' पर विराजित
सफेदपोशों के
टमाटर जैसे
लाल गाल है,
कमाल है !
खरगोश-बकरी
मर रहे हैं,
बिच्छू-सांप
राज कर रहे हैं !
भेड़ियों के तन पे
भेड़ की खाल है,
कमाल है !
हज़ारों
सवाल है !!
ज़वाब है गिनती के 
और
हाल बेहाल है !!!
कमाल है !
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