शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

'भारत' बंद या 'दिमाग' बंद ?


.....'भारत बंद' अब एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं रहा.जो भी संगठन या पार्टी, जब भी चाहे भारत बंद की घोषणा कर देती है,जबकि इसका परिणाम शून्य ही रहता है.हाल-फिलहाल में भारत बंद इतनी बार हो चुका है कि अब 'बंद' अपनी प्रासंगिकता भी खो चुका है.कोई बंद तभी सार्थक होता है,जबकि उससे जुड़े लोग अपने मन से इसमें शरीक होते हो.आज सच्चाई ये है कि जिन संगठनों या पार्टियों की तरफ से 'भारत बंद' का आयोजन किया जाता है,केवल उनसे जुड़े लोग ही इस तरह के आयोजनों में जुटते हैं,और 'अवाम' जबरदस्ती या डर से ही इस तरह के आयोजनों को स्वीकार करता है.
......वैसे भी सरकार या नीति निर्माताओं के कुकर्मों की सज़ा देश के अवाम को दिये जाने को कैसे जायज़ ठहराया जा सकता है ? 'भारत बंद' से आखिर सरकार या नीति निर्माताओं पर क्या फर्क पड़ता है? फर्क पड़ता है तो उस आम इंसान पर ही जो सरकार की कुनीतियों और बंद करवाने वालों के बीच पिसता है.बंद से ज्यादा से ज्यादा ये होता है कि संगठनो या पार्टियों के 'नेताओं' को अपनी राजनीति चमकाने का मौक़ा मिलता है और 'टी.वी-अखबारों' में आने की भूख शांत होती है--इससे ज्यादा कुछ भी नहीं !
......याद कीजिए,हाल-फिलहाल में बंद हुए 'भारत' से इस देश के अवाम को क्या हासिल हुआ? क्या सरकार के घोटाले रुके ? महंगाई रुकी ? सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार रुका ? निश्चित रूप से इन सभी सवालों का ज़वाब 'ना' में ही होगा.बस इस तरह के बंद से इस देश का आम इंसान ज़रूर परेशान हुआ है.सरकार की जनविरोधी नीतियों का समर्थन किसी भी कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए,लेकिन उसका विरोध भी इस तरह से होना चाहिए कि जन विरोधी सरकार और उसके निति निर्माता परेशान हो और वे अवाम के हित में कार्य करने को मजबूर हो.'देश बंद' करने की बजाय राज करने वालों और उसके निति निर्माताओं का चलना,फिरना,उठाना,बैठना और सांस तक लेना मुश्किल कर देना चाहिए,तभी अवाम के हित में कुछ हो सकता है.भारत बंद में,कथित रूप से जबकि करोड़ों लोग शामिल होते हैं (जैसा की बंद करवाने वाले दावा करते हैं),तो फिर निश्चित रूप से 'कुछ लाख' लोगों को लेकर देश पर राज करने वालों और उनके निति निर्माताओं को घेरने का काम हरगिज़ कठिन नहीं होना चाहिए !आखिर 'अपराध' वे कर रहे हैं तो 'सज़ा' भी उन्हीं को मिलनी चाहिए,ना कि अवाम को.
......शकों बाद इस देश में एक सच्चा जन-आन्दोलन 'अन्ना' के नेतृत्व में शुरू हुआ था,जिसे अगर विभिन्न संगठनो, और राजनैतिक दलों का 'सच्चा' समर्थन मिला होता तो इस देश के आम इंसान की तकदीर संवर सकती थी ! लेकिन चूँकि उस आन्दोलन से 'स्वार्थ' नहीं सध रहा था,सो 'देश भक्ति' का चोला पहने घूम रहे लोगों ने उस आन्दोलन को बेमौत मारने में ही अपनी शक्ति लगादी थी.अब जबकि एक अच्छा,सच्चा और वास्तविक 'जन-आन्दोलन' 'सुप्त' अवस्था को प्राप्त हो चुका है,और जिसे भ्रष्ट-बेईमान,देश खाऊ लोग 'मृत' मान के 'मूंछों पर ताव' देकर घूम रहे हैं,और 'देश हित' के लिए विभिन्न 'नौटंकियों' में लगे हैं,वस्तुतः वे अवाम की कीमत पर सिर्फ अपना 'स्वार्थ' साध रहे हैं !
.....रकारों और राजनितिक दलों-संगठनो के बीच पिसते भारत देश के अवाम को, भारत बंद करके कृपया और परेशान मत कीजिए.भारत बंद करने की बजाय अपने 'बंद दिमाग' को खोलिए,इस देश के आम इंसान के बारे में सोचिये और भ्रष्‍ट-बेईमान सरकारों और उनके उतने ही भ्रष्ट-बेईमान नीति निर्माताओं को देश के प्रति,अवाम के प्रति 'पाबन्द' कीजिए,तभी कोई सार्थक परिणाम निकल पायेगा.
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शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

किसका 'कल्याण' कर रही है ये सरकार ??

.......देश के धन के रखवालों द्वारा,देश के धन की अनवरत 'चोरियां' चालू है !अवाम अपने देश के धन का हिसाब मांगे तो 'जिम्मेदार' लोग हिसाब देने को तैयार नहीं है !आम इंसान से जुड़े मुद्दों से, देश को दिशा देने वाले इन 'महानुभावों' को कोई मतलब नहीं है !
.......'कोयले' की कालिख में पुतने के बाद अब अजब-गज़ब कानून बनाने की तैयारी है ! अपनी संस्कृति को बेचने पर तुले लोग अब 'पत्नी' को भी घरेलु कर्मचारी घोषित कर 'पति' से 'वेतन' दिलवाने  का 'पुण्यदायी' काम करने में लगे है !
.......इधर राज्यसभा में दो 'महानुभावों' ने 'कुश्ती' कर आने वाले समय का 'ट्रेलर' दिखा दिया है !'अन्ना' और 'रामदेव' को फिलहाल आंशिक रूप से विफल कर के 'सरकार' में 'दुस्साहस' हिलोरे ले रहा है !जात - पाँत और वोटों की राजनीति करने वाले कुर्सियों पर कब्ज़ा कर इस देश को मटियामेट करने में जी-जान से जुटे हैं !
.......भारत के भाग्य विधाता बन 'संसद' की शोभा बढाने वाले महानुभावों को उन लाखों गरीब बच्चों का ख्याल नहीं जो कुपोषण के शिकार हो कर मारे जा रहे हैं ! देश की उस गरीब जनता का ख्याल नहीं जो अपनी बीमारियों का धनाभाव के कारण उचित इलाज नहीं करवा पा रही और असमय मौत के मुंह में समा रही है !देश का गरीब दाने-दाने के लिए मोहताज है और वोटों की टुच्ची राजनीति में गले तक डूबी सरकार को इतनी भी फुर्सत नहीं कि सरकारी गोदामों में, जिम्मेदार लोगों की लापरवाही के कारण सड रहे अनाज की सुध ली जाए ! आखिर ये कैसी 'जनकल्याणकारी' सरकार है,जिसे 'घपलों-घोटालों' से ही फुर्सत नहीं है,और जिसकी छत्र-छाया में तथाकथित नेताओं की एक पूरी 'फौज' गुंडई-बदमाशी पर उतर आई है,और तमाम तरह के अनैतिक कार्यों में संलग्न है,और सरकार 'गठबंधन' धर्म निभा कर इस देश का दिवाला निकालने पर आमादा है !
.......'अन्ना'और 'रामदेव' के खिलाफ 'तलवारें' भांजने वाले 'देशभक्त' इस संकट की घडी में कोई तो उपाय बताएं ! 'अन्ना' और 'रामदेव' के जन आन्दोलन को कईं 'किन्तु-परन्तु' लगा कर देखने वाले अब तो आगे आयें,या कि उन्हें अभी भी इंतज़ार है देश की दशा बद से बदतर होने का ???देश हित में खड़े होने वालों की टांग खींचने वाले,आखिर अब खुद क्यूँ नहीं अपने कदम बढाते इस देश की दशा सुधारने के लिए...??? या कि इस 'खेल' और इसके 'खिलाड़ियों' में उनकी भी सहभागिता है ????