रविवार, 14 मई 2017

!! मां तुझे सलाम !!

जब कमरे तक सिमट जाए 'मां' की दुनिया
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     बुढापे की दहलीज़ पर पहुंची माँ की दुनिया अक्सर अपने कमरे तक ही सिमट जाती है.उगते और डूबते सूरज को कमरे की दीवारें ढक देती हैं तथा सुबह से शाम और लम्बी रात तक का सफ़र कमरे के पलंग पर एकाकी सा कटता रहता है,क्योंकि आधुनिकता का दम्भ भरते हुए और जीवन मूल्यों को खूंटी पर टांगकर हम ये मान लेते हैं कि हमारे पास समय नहीं है! बच्चों की एक्टिविटी, क्लब, किटीपार्टी, मॉल, सिनेमा,वाट्सएप,फेसबुक आदि-आदि हमारा सारा समय चुरा लेते हैं,और 'माँ' हमारे समय से महरूम रह जाती है! कईयों को दुनियां में ला चुकी, दुनियां दिखा चुकी और दुनियादारी सिखा चुकी 'माँ' बुढापे तक पहुँचते-पहुँचते दुनियां से ही कट जाती है!हाथों-पैरों और नज़रों से लाचार बूढी 'माँ' अपने अतीत की स्मृतियों की जुगाली करती, मन मारकर एकाकीपन को स्वीकार कर लेती है और अपनी बचीखुची जिंदगी के दिन गिनने लगती है!
     हमें दुनियां में लाने वाली 'माँ' के लिए कभी हम ही पूरी दुनियां हुआ करते थे.आज जब बुढापे में 'माँ' की दुनियां अपने कमरे तक ही सिमट गयी हो और अमूमन एकाकीपन में कट रही हो तो क्या हम फिर से उसकी दुनियां नहीं बन सकते?क्या हम एक कमरे में सिमट आई 'माँ' की दुनियां में उस पूरी दुनियां के रंग नहीं भर सकते,जो आज उससे दूर है?
    बेशक हम अपनी 'माँ' की दुनियां बन सकते हैं,उसके कमरे में भी पूरी दुनियां के रंग भर सकते हैं.एक कमरे में सिमटी 'माँ' की दुनियां में, उसके साथ रहने वाला  बेटा, बहु, पोता, पोती अगर दिन में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए प्रवेश करे,उसे अपने घर के बाहर की,गली की,मोहल्ले की,गाँव,की शहर की दुनियां में हो रही हलचल की जानकारी देते रहें,उसकी अपनी स्मृति में बसी हुई अतीत बन चुकी जो उसकी अपनी दुनियां है, उसे कुरेदते रहें,उसके किस्से सुनते रहें,तो 'माँ' की कमरे में सिमटी दुनियां को विस्तार मिल सकता है.'माँ' के लिए कमरे में सिमट गयी दुनियां को भी हम इस तरीके से जीवंत और खुशहाल बना सकते हैं,और उसे अहसास दिला सकते हैं कि 'माँ',आज भी तुम्हारी दुनियां बदली नहीं है,वही पहले जैसी है.सप्ताह में एक-दो बार माँ के पास बैठ कर हंसी-ठिठोली कर ली जाए,उसकी पसंद पूछ कर खाना बना लिया जाए,कभी बाज़ार जाते वक्त माँ से भी पूछ लिया जाए की माँ आपके लिए कौनसी मिठाई लाऊं.याकि माँ आप को समोसे पसंद है,मैं आते वक्त लेकर आउंगा,आप पेट थोड़ा खाली रखना!कभी दिन में,रात में,जब भी समय मिले माँ के पाँव दबा लें,यकीन मानिए आपके हाथों का स्पर्श होते ही माँ अपने को वैसे ही सुरक्षित समझने लगेगी,जैसे कि हम बचपन में दौड़ते हुए आकर माँ के आँचल में छुप जाते थे और स्वयं को एकदम महफूज़ समझते थे!दोस्तों,ये सब कुछ करना कठिन नहीं है!इसके लिए बस हमारे अन्दर ज़ज्बातों का होना ज़रूरी है,माँ के संग गुज़रे बचपन और जवानी की स्मृतियों का होना ज़रूरी है.दोस्तों ऐसा करके देखिये,यकीन मानिए अगर हम ऐसा करेंगे तो माँ के उस कमरे में ही हमारे लिए 'चारों धाम' और 'छत्तीस करोड़' देवी देवता साक्षात उपस्थित हो जायेंगे!
    बुढापा एक ऐसा सत्य है,जिसे ज़िंदा रहने वाला कभी झुटला नहीं सकता.आज ''मदर्स डे'' है,आईये आज से ही हम शुरुआत करें कमरे में सिमटी पड़ी बूढी 'माँ' की दुनियां में एक परिपूर्ण, रंगबिरंगी दुनियां के रंग भरने की.इससे बूढी 'माँ' को उसकी खोयी दुनियां तो मिल ही जाएगी साथ ही साथ हमारे बच्चों को भी संस्कार भी मिल जायेंगे ताकि भविष्य में अगर हम बुढापे तक पहुँच जाते हैं तो,हमारी दुनियां भी मात्र एक कमरे तक सिमटने से बच जाएगी.
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