बुधवार, 29 जून 2011

!! शायद कोई इंसान होगा !!


************************************************
कह देना आज ये बहुत ही आसान होगा !
कि मुट्ठी में कल मेरी ये जहान होगा !!
खबर नहीं जब यहाँ अगले ही पल की,
कल की बात,बिन नींव का मकान होगा !
.वो शरीके ग़म हो अजनबी के खूब रोया,
कलयुग में बचा वो शायद कोई इंसान होगा !
झूठ ही समझना इसे 'गर मैं कहूँ किसी दिन,
डिगा ना अब तलक कभी मेरा ईमान होगा !
मानता हूँ ऐब है बहुत मेरी शायरी में ,मगर
कुछ तो मेरा भी अलग अंदाज़े बयाँ होगा !
एक 'अन्ना-बाबा' काफी नहीं बेईमानों के लिए,
आयेगा इन्कलाब,जब खडा 'हिन्दुस्तान' होगा !!
************************************************

रविवार, 19 जून 2011

!! प्रणाम पिता जी !!

**************************
''पिताजी''
दुनिया आज 
आपका दिन 
मना रही है,
.बहुत से बेटों को
आपकी सही में 
और बहुत से बेटों को
आपकी दिखावटी
'याद' आ रही है !
आज का दिन छोड़ दें
तो 
बाकी के 364 दिन 
आप कहाँ थे .....?
कैसे थे ..... ?,
आराम से थे कि 
'जैसे-तैसे' थे ! 
कुछ बेटों को 
ये जानने की 
फुर्सत नहीं थी, 
और 'गर उन्हें फुर्सत थी 
तो ''घरवाली'' की
इजाज़त नहीं थी !!
''पिताजी''
ये दुनिया 
बड़ी अजीब है,
जो बेटे बचपन में 
'पिता' की 
अंगुलियाँ पकड़ कर 
चलते हैं,
वे ही ''बेटे''
बड़े हो कर 
''पिता'' को
'अंगूठा' 
दिखा देते हैं !!!
खैर,
'पिताजी'
इस दिखावटी दुनिया में 
आज के दिन आपको 
मेरा भी ''प्रणाम'' !!!
**************************

शनिवार, 18 जून 2011

!! गाँव बुलाता है !!

!! गाँव बुलाता है !!
*****************************************
रेगिस्तान से तपते
शहर में जब
जलने लगते हैं पाँव
और
झुलसने लगता है बदन,
तब बड़ा याद आता है
गाँव,
नीम और पीपल की
छाँव !
अच्छी लगने लगती है तब
शहर के प्रदूषण से
गाँव की धूल,
शहर के गटर से
गाँव की नालियां,
और शहर के कूड़े-करकट से
गाँव में छितराया हुआ
गोबर !
और 
सूट-बूट-टाई में लिपटी
मशीनों की जगह
धोती-गमछे और
घूँघट के पीछे के
''इंसान'' !
अक्सर गाँव बुलाता है....
याद भी आता है......
मगर
लौट के ''वो''
आये भी कैसे....!!
शहर की ''हवा'' की
लत जो लग गयी है
उनकी साँसों को........... !!  
*****************************************

शनिवार, 11 जून 2011

!! मुक्तिका !!

!! मुक्तिका !! 
***************************************
हवाएं ठंडी बहुत ही भाती है छत पर  !
नींद सुकूं भरी रात में आती है छत पर  !! 
नींद उड़ भी जाए तो ग़म होता नहीं है ,
 चाँद-सितारों से गुफ्तगू हो जाती है छत पर  !
दिन में निचोड़ा है सूरज ने बदन को,
रात भर चांदनी,अमृत पिलाती है छत पर  !
माना कूलर -ए.सी. का ज़माना है यारों ,
'रूह' तक ठंडक पहुँच पाती है छत पर  !
'चाँद' देखने छत पर चढ़ते थे दिन में 'अशोक',
यादें लड़कपन की गुदगुदाती है छत पर !!
****************************************
                                                                                                                                                

मंगलवार, 7 जून 2011

!! अघोषित कर्फ्यू !!


***********************************************************
हमारे यहाँ अघोषित कर्फ्यू लगा है !

सुबह के 11 बजे से शाम के 6 बजे तक घर से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाना बड़ी बात हो गयी है !पारे ने 45-46 पर डेरा जमा रखा है 
!
चाय की थडियों पर चूल्हे ठण्डे पड़े हैं,भगोने औंधे मुंह तिरस्कृत से हैं,चाय की पत्ती उबाले जाने के इंतज़ार में रुआंसी सी हैं और शक्कर अलग-थलग पड़ी खुद को ही कडवा मह्सूश कर रही है!

कुल्हड़ अपने कद्रदानों के मुंह लगने को बेताब से हैं और थडी वाला माथे पर सलवटें डाल चिंतित सा बैठा है ! गर्मी,प्राणियों को कपडे की तरह निचोड़ने को आमादा है !!

यह स्थिति कब बदलेगी कहा नहीं जा सकता ! जून के महीने के अभी भी 23 दिन बचे हैं,केलेंडर यह दिखा-दिखा कर डराए जा रहा है !

कुल मिला कर बात थोड़ी सी अजीब है,मगर इस गर्मी ने सबको ''ठंडा'' कर रखा है !!!

***********************************************************

सोमवार, 6 जून 2011

बाकी सब ठीक है !


*********************************************
प्रिय मित्रों,

इस गर्मी में हाल बेहाल है,और बस,बाकी सब ठीक है !

मैंने तो नहीं मापा,लेकिन अखबार वाले बता रहे हैं कि आज-कल पारा 43-44 के आस-पास चल रहा है,अब ऐसे में आप जानों कि क्या हालत होती होगी !शारीर सारे दिन पसीने से लथ-पथ रहता है.पर इसका भी एक फायदा है,आज-कल स्नान नहीं करना पड़ता ! क्योंकि शारीर वैसे ही पसीने से पानी-पानी हो जाता है ! हाँ, तौलिये से पोंछने की कसरत ज़रूर करनी पड़ती है ! वैसे,बाकी सब ठीक है !

घर से बाहर निकलो तो 'लू' के थपेड़े थप्पडें मार-मार कर गाल लाल कर देते हैं ! पर इसका भी एक फायदा है,जब भी 'चाय' पीने की इच्छा होती है,मुंह में थोड़ा दूध,चाय -पत्ती,और शक्कर डाल कर 'लू' में निकल लेते हैं और एक उबाल आते ही गटक लेते हैं !वैसे,बाकी सब ठीक है!

दिन के उजाले में बिजली की ज़रूरत नहीं होती इसलिए बिजली विभाग बिजली नहीं देता,और रात में 'पॉवर -कट' चलता है इसलिए बिजली नहीं आती !ऐसे में रात में अगर घर में निचे सोएं तो रात भर नींद नहीं आती,इसलिए छत पर सोने चले जाते हैं.हालांकि नींद तो छत पर भी नहीं आती,लेकिन इसका भी एक फायदा है,कि पूरी रात 'तारे' और 'मच्छर' गिन-गिन कर आसानी से काटी जा सकती है!वैसे बाकी सब ठीक है !

माफ़ करना,अपना ही हाल बताता गया,आपका तो पूछा ही नहीं !वैसे बाकी सब ठीक है,लेकिन फिर भी अगर इस गर्मी में ''बाकी''कुछ बच गया हो तो आप भी बताइये !


*********************************************

-- मुक्तिका --