सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

!! राजस्थान विधानसभा और भूतों का भय !!

   विधान सभाओं में बैठ कर राज्य का भविष्य लिखा जाता है.किन्तु आजकल  "राजस्थान विधान सभा " में बैठ कर  "भूतों " का लेखाजोखा किया जा रहा है !चार सालों तक सोये हुए  'भूत अब पांचवें साल में अचानक जाग गए हैं !लोगों को इसमें आश्चर्य हो रहा है,जबकि इसमें आश्चर्य की कोई बात ही नहीं है !अक्सर ही ऐसा होता है कि जनता चार सालों तक सरकारों के खेल देखती रहती है,और पांचवें साल में,जब चुनाव सामने दिख रहे होते हैं,सरकारों से कामों का हिसाब मांगने लगती हैं !अब ऐसे में  'भूतों का जागना लाजमी ही है ! 

  चार सालों तक विधान सभा में विराजमान महानुभावों को जिन  'भूतों ने नहीं सताया,उन्हें यकायक अब पांचवे साल में भूतों ने सताना शुरू कर दियातो जरूर कुछ तो गड़बड़ है ! सम्भव है कि राजस्थान की विधान सभा में बैठे राजस्थान के कईं भाग्य विधाताओं को अब अगले चुनावों में स्वयं अपने 'भूत(पूर्व)हो जाने का डर सता रहा हो और ऐसे में अगर  'भूत याद आ जाए तो आश्चर्य कैसा ?!

     वैसे भारत जैसे महादेश में,जहां  "घाघ और महाभ्रष्ट नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स का गठजोड़", 'माल्याओं और नीरव मोदियों के बहाने,अवाम के पैसों को मिलबांट कर खाने में निपुणता प्राप्त कर चुका हो,वहां भला उनसे भी बड़ा कोई  'भूत हो  भी सकता है ?!चुनाव के पांचवें साल में अवाम को ये बताना कि विधान सभा में  'भूतों का डेरा है,ये  “असली वर्तमान भूतों” से ध्यान हटाने की हास्यापद कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं हो सकती,ये अवाम जानता है ! देश को मिलबांट कर खाने वाले  "घाघ और महाभ्रष्ट नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स " के नामों के पीछे एक समय  "भूतपूर्व " जरूर लगता है.ये बस शब्दों का खेल है  “भूतपूर्व” को पलट कर पूर्व भूत” कर दें तो सारी गुत्थी सुलझ जाती है,और आज राजस्थान विधान सभा में उछलकूद कर रहे  'भूतों की असलियत सामने आ जाती है !

     इधर बेचारे  'भूत भी परेशान कि अपनी कारगुजारियां छिपाने के लिए,ऐसे  'भूत हमें बदनाम कर रहे हैं,जिनसे अवाम भी त्रस्त है ! बेचारे भूत आज कितने बेबस हो गए हैं ! वे कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ये भी नहीं बता सकते कि सबसे बड़े  'भूत कौन है,और हमें तो नाहक ही बदनाम किया जा रहा है ! 

     सारा चक्कर वर्तमान के  “अभूतपूर्वों” के  “भूतपूर्व” होने का डर मात्र है,जो भूतों के बहाने बाहर आ रहा है !


बुधवार, 9 अगस्त 2017

सुकून अभी बाकी है !

माता-पिता को समर्पित एक विडिओ जो लोगों के विचार बदल सकता है !



रविवार, 14 मई 2017

!! मां तुझे सलाम !!

जब कमरे तक सिमट जाए 'मां' की दुनिया
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     बुढापे की दहलीज़ पर पहुंची माँ की दुनिया अक्सर अपने कमरे तक ही सिमट जाती है.उगते और डूबते सूरज को कमरे की दीवारें ढक देती हैं तथा सुबह से शाम और लम्बी रात तक का सफ़र कमरे के पलंग पर एकाकी सा कटता रहता है,क्योंकि आधुनिकता का दम्भ भरते हुए और जीवन मूल्यों को खूंटी पर टांगकर हम ये मान लेते हैं कि हमारे पास समय नहीं है! बच्चों की एक्टिविटी, क्लब, किटीपार्टी, मॉल, सिनेमा,वाट्सएप,फेसबुक आदि-आदि हमारा सारा समय चुरा लेते हैं,और 'माँ' हमारे समय से महरूम रह जाती है! कईयों को दुनियां में ला चुकी, दुनियां दिखा चुकी और दुनियादारी सिखा चुकी 'माँ' बुढापे तक पहुँचते-पहुँचते दुनियां से ही कट जाती है!हाथों-पैरों और नज़रों से लाचार बूढी 'माँ' अपने अतीत की स्मृतियों की जुगाली करती, मन मारकर एकाकीपन को स्वीकार कर लेती है और अपनी बचीखुची जिंदगी के दिन गिनने लगती है!
     हमें दुनियां में लाने वाली 'माँ' के लिए कभी हम ही पूरी दुनियां हुआ करते थे.आज जब बुढापे में 'माँ' की दुनियां अपने कमरे तक ही सिमट गयी हो और अमूमन एकाकीपन में कट रही हो तो क्या हम फिर से उसकी दुनियां नहीं बन सकते?क्या हम एक कमरे में सिमट आई 'माँ' की दुनियां में उस पूरी दुनियां के रंग नहीं भर सकते,जो आज उससे दूर है?
    बेशक हम अपनी 'माँ' की दुनियां बन सकते हैं,उसके कमरे में भी पूरी दुनियां के रंग भर सकते हैं.एक कमरे में सिमटी 'माँ' की दुनियां में, उसके साथ रहने वाला  बेटा, बहु, पोता, पोती अगर दिन में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए प्रवेश करे,उसे अपने घर के बाहर की,गली की,मोहल्ले की,गाँव,की शहर की दुनियां में हो रही हलचल की जानकारी देते रहें,उसकी अपनी स्मृति में बसी हुई अतीत बन चुकी जो उसकी अपनी दुनियां है, उसे कुरेदते रहें,उसके किस्से सुनते रहें,तो 'माँ' की कमरे में सिमटी दुनियां को विस्तार मिल सकता है.'माँ' के लिए कमरे में सिमट गयी दुनियां को भी हम इस तरीके से जीवंत और खुशहाल बना सकते हैं,और उसे अहसास दिला सकते हैं कि 'माँ',आज भी तुम्हारी दुनियां बदली नहीं है,वही पहले जैसी है.सप्ताह में एक-दो बार माँ के पास बैठ कर हंसी-ठिठोली कर ली जाए,उसकी पसंद पूछ कर खाना बना लिया जाए,कभी बाज़ार जाते वक्त माँ से भी पूछ लिया जाए की माँ आपके लिए कौनसी मिठाई लाऊं.याकि माँ आप को समोसे पसंद है,मैं आते वक्त लेकर आउंगा,आप पेट थोड़ा खाली रखना!कभी दिन में,रात में,जब भी समय मिले माँ के पाँव दबा लें,यकीन मानिए आपके हाथों का स्पर्श होते ही माँ अपने को वैसे ही सुरक्षित समझने लगेगी,जैसे कि हम बचपन में दौड़ते हुए आकर माँ के आँचल में छुप जाते थे और स्वयं को एकदम महफूज़ समझते थे!दोस्तों,ये सब कुछ करना कठिन नहीं है!इसके लिए बस हमारे अन्दर ज़ज्बातों का होना ज़रूरी है,माँ के संग गुज़रे बचपन और जवानी की स्मृतियों का होना ज़रूरी है.दोस्तों ऐसा करके देखिये,यकीन मानिए अगर हम ऐसा करेंगे तो माँ के उस कमरे में ही हमारे लिए 'चारों धाम' और 'छत्तीस करोड़' देवी देवता साक्षात उपस्थित हो जायेंगे!
    बुढापा एक ऐसा सत्य है,जिसे ज़िंदा रहने वाला कभी झुटला नहीं सकता.आज ''मदर्स डे'' है,आईये आज से ही हम शुरुआत करें कमरे में सिमटी पड़ी बूढी 'माँ' की दुनियां में एक परिपूर्ण, रंगबिरंगी दुनियां के रंग भरने की.इससे बूढी 'माँ' को उसकी खोयी दुनियां तो मिल ही जाएगी साथ ही साथ हमारे बच्चों को भी संस्कार भी मिल जायेंगे ताकि भविष्य में अगर हम बुढापे तक पहुँच जाते हैं तो,हमारी दुनियां भी मात्र एक कमरे तक सिमटने से बच जाएगी.
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शनिवार, 15 अप्रैल 2017

जनकल्याणकारी सरकारें आखिर क्यों 'दारु' पिलाने पर आमादा है?

जनकल्याणकारी सरकारें आखिर क्यों 'दारु' पिलाने पर आमादा है?
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      राजस्थान में दारु की कम बिक्री पर कुछ समय पहले आबकारी विभाग के अफसरों की सुविधाएं छीन कर सरकार ने दण्डित किया था,अब स्टेट हाईवे का नाम बदलने का खेल चल रहा है!मतलब सरकार का काम दारु के बिना नहीं चल सकता!
     एक नशेड़ी से रुपये कमाने की खातिर 3-4 जिन्दगियों को बर्बाद करने और एक घर को उजाड़ने की सरकारी नीति घोर निंदनीय है,इसके खिलाफ सशक्त जन आंदोलन की सख्त जरुरत है।

मंगलवार, 28 मार्च 2017

सदमे में "छद्म सेक्यूलरिस्ट" !

आदित्यनाथ ने सचमुच ‘योगी’ की तरह सरकार चला दी तो ???
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     ये प्रश्न आज बहुत से लोगों के मन में उठ रहा है और कईंयों के दिलो दिमाग में तूफ़ान पैदा कर रहा है! तथाकथित ‘सेक्युलरिस्टों’ की जमात ने अल्पसंख्यक समुदाय, खासकर मुसलमानों के मन में भगवा रंग और भाजपा के प्रति जैसी धारणा बनादी है,उससे उस समुदाय में यूपी की सरकार और खासकर उसके मुखिया योगी आदित्यनाथ को लेकर आशंकाओं का पैदा होना लाज़मी ही है.हालांकि इस बार के यूपी चुनावों ने अल्पसंख्यकों की इस अवधारणा को ध्वस्त किया है,क्योंकि उन्होंने  भी इस बार भाजपा को वोट किया है,फिर भी ‘छद्म सेक्युलरिस्टों’ की जमात मीडिया में अपनी छाती कूट कर भाजपा के खिलाफ एक भय वाला माहोल बनाने में सक्रीय है.
     आईये अब विचार करते हैं कि आदित्यनाथ अगर सचमुच एक ‘योगी’ की तरह यूपी की सरकार को चलादें तो क्या होगा? क्या यूपी के अल्पसंख्यक,खासकर मुसलमानों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट जाएगा? क्या यूपी साम्प्रदायिक आग में झुलस जाएगा? क्या हिन्दू-मुस्लिम सड़कों पर तलवारें भांजने लग जायेंगे? क्या खून की नदिया बह जायेंगी? जी हाँ,दिग्विजय सिंह,आज़म खान,मायावती,औवेशी और उन जैसे ही अनेकानेक ‘छद्म सेक्युलरिस्टों’ के हिसाब से बिलकुल ऐसा ही होगा, अगर आदित्यनाथ ने बिलकुल ‘योगी’ की तरह सरकार चलादी तो!
    लेकिन यहाँ सिक्के का दूसरा पहलु भी है,और ज्यादा मजबूत भी है! अगर आदित्यनाथ वाकई में एक ‘योगी’ की तरह सरकार चला देते हैं तो माननीय दिग्विजय सिंह, आज़म खान, मायावती और औवेशी जैसे अनेकानेक ‘छद्म सेक्युलरिस्टों’ के सपने कभी पुरे हो ही नहीं सकते! इसलिए नहीं हो सकते क्योंकि एक ‘योगी’,का अपना कोई स्वार्थ नहीं होता, उसके लिए सभी लोग,बिना किसी भेदभाव के,एक सामान होते हैं,उनके संस्कारों में प्रेम, दया, करुणा, अहिंसा, समता, मानवता का वास होता,और वे एक बेहतर ‘रामराज्य’ के अलावा लोगों को कुछ दे ही नहीं सकते! माफ़ कीजिए,वैसा ‘रामराज्य’ नहीं,जैसा कि ‘छद्म सेक्युलरिस्टों’ ने,अल्पसंख्यकों,खासकर मुसलमानों के मन में बिठाया है,जिसमें कि नफ़रत,भेदभाव,हिंसा,का भाव है! किसी ‘सच्चे योगी’ का रामराज्य बिलकुल भगवान् श्री रामजी के राज्य जैसा ही हो सकता है,जहां कि सिर्फ और सिर्फ प्रेम, दया, करुणा, अहिंसा,समता,मानवता का भाव ही था,और जहांकी प्रजा खुशहाल थी.एक ‘योगी’,निरंकुश,जल्लाद,नफ़रत से भरा हुआ,धर्म और जाति के नाम पर भेदभाव करने वाला शासक भला हो भी कैसे सकता है? दशकों से ‘भगवा’ और ‘रामराज्य’ के नाम पर,अल्पसंख्यकों,खासकर मुसलमानों में,‘छद्म सेक्युलरिस्टों’ द्वारा फैलाई गयी भ्रांतियों को तोड़ने का यह सही वक़्त है.योगी आदित्यनाथ को सचमुच अब ‘योगी’ की तरह ही सरकार चलानी चाहिए और सही अर्थों में रामराज्य की स्थापना पर दृढ़ता से आगे बढना चाहिए.वैसे भी एक ‘योगी’ को कौनसा अपनी सात पुश्तों के लिए धन इकट्ठा करना है,या अपने नाते रिश्तेदारों के लिए राजनीति की ज़मीन तैयार करनी है! एक ‘योगी’ के पास आखिर खोने के लिए है ही क्या?? पाने और देने के लिए पूरा ‘रामराज्य’ है,जिसे वे ही पा सकते हैं और वे ही दे सकते हैं.

     आखिर एक ‘योगी’, भ्रष्ट राजनीति और राजनेताओं की कतार में बैठना क्यूँ पसंद करेगा? ‘राजनीति’ को ‘रामनीति’ बनाकर एक योगी ही प्रदेश,देश की दशा और दिशा बदल सकता है.योगी आदित्यनाथ ऐसा कर पायेंगे,ये उम्मीद रखी जा सकती है,क्योंकि सत्ता में आने के दिन से ही योगी आदित्यनाथ ने अपनी सकारात्मक सोच को क्रियान्वित करना शुरू कर दिया है! 
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गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

!! देशभक्ति का खुमार !!

 !! देशभक्ति का खुमार !! 
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देशभक्ति का हमारा सारा खुमार,
फुटपाथिया दुकानों पर सजे,
चमचमाते,सस्ते किन्तु घटिया 
"चाईनीज" माल को देखते ही 
उतर जाता है ! 

कुम्भकार द्वारा 
मेहनत से बनाए गए 
सुन्दर,पारंपारिक दीयों और 
लाईट की देशी झालरों को देख कर 
उबकाई आती है,
क्योंकि हमारी जीभ तो 
"चाईनीज "माल देख कर ही 
लपलपाती है !

     कड़वा है,
किन्तु क्या करें...सच यही है !!

   इस सच को स्वीकारे बिना 
और फिर इसे झूठ में बदले बिना 
देशभक्ति सही मुकाम नहीं पा सकती।

इस दिवाली जब 
आपके-हमारे घरों में 
दीपक जल रहे होंगे,

सरहद पर 
आपके-हमारे लिए 
शहादत देने वाले किसी 
वीर शहीद के घर 
मातम पसरा होगा,
घनघोर अन्धेरा होगा !

उस वीर शहीद को 
लगी गोलियों में शायद 
कुछ धन हमारा भी हो सकता है,
जो हमने 
विदेशी घटिया माल खरीद कर 
दुश्मन देश को दिया होगा !

    इस दिवाली 
किसी शहीद के घर की 
देहरी को देखलें तो शायद 
दिवाली के अर्थ भी समझ में आएं 
और देशभक्ति के मायने भी !!

!! जय हिन्द !!

शनिवार, 24 सितंबर 2016

!! शहादत की कीमत !!


शहादत की कीमत
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शहादत की कीमत
बहुत है
दो-चार लाख रुपये !



सरहद पर शहीद हुआ
वीर जवान आखिर
इस देश के 
किसी सेठ-साहूकार,
पूंजीपति,दबंग,
मंत्री-नेता-अफसर
या किसी और प्रजाति के
हरामखोर की औलाद
थोड़े ही था !



शहीद नहीं आया था
किसी बंगले,कोठी,महल से,
वो 
टाई,सूट,बूट पहन
कंधे उचका-उचका कर
बोलने वाली
पित्ज़ा-बर्गर वाली पीढ़ी का
प्रतिनिधि भी नहीं था !



शहीद तो आया था
खेत खलिहानों से,
पहाड़ों से,
देहातों से,
शहीद निकला था
टूटे झोंपड़े से,
पगडंडियों वाले
ऊबड़खाबड़ रास्ते से,
धूल से सने हालातों से,
रूखी-सूखी खाते,
फटे कपडे पहनते,
शिक्षा-साधनों को तरसते
माहोल से !



ऐसे शहीद के परिवार को
पैसों की क्या ज़रूरत ?



उसका परिवार
कर लेगा गुज़ारा
रूखी-सुखी खाकर,
अपने जवान बेटे-पति-पिता की
शहादत को याद करते हुए !



देश का पैसा बचा कर रखो
सेठों-साहूकारों,दबंगों
मंत्रियो-नेताओं-अफसरों
पूंजीपतियों-हरामखोरों 
और
उनकी औलादों के लिए!



देश का पैसा
शहीदों पर जाया मत करना,
देश के पैसों पर
सिर्फ हरामखोरों का हक़ है !!!
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मंगलवार, 30 अगस्त 2016

ओल्ड इज गोल्ड !

ओल्ड इज गोल्ड !





पुरानी चीजों को बड़ी हिकारत भरी नज़रों से देखा जाता है।साइकिलों,घोड़ा गाड़ियों,बैल गाड़ियों को आउट ऑफ डेट करार दिया जा चुका है,लेकिन मज़ेदार बात ये है कि जहां पर आधुनिक चीजें भी फ़ैल हो जाती है या ज़वाब दे जाती है,वहां फिर से पुरानी चीजों की सहज याद आती है,क्योंकि वहां वे ही उपयोगी साबित होती है।
    अभी हमारे यहां लगातार चार दिनों तक जम कर बारिश हुई।इंद्रदेव की कृपा 'कोप' में बदल गई।बाढ़ के हालात पैदा हो गए।बिजली गुल हुई तो ऐसी गुल हुई कि पुरे 30 घण्टों बाद आई! इस बीच मोबाइल-नेट सबकुछ धीरे-धीरे ठप्प जो गए।रात में एक तरफ मूसलाधार बारिश दूसरी तरफ घुप्प अन्धेरा! जो अपने घर पर इन्वर्टर लगा इतराते घूमते थे,जब पूरा मोहल्ला घुप्प अँधेरे में डूबा होता और वे अपने घर को इन्वर्टर के बल पर जगमग कर फुले नहीं समाते थे,30 घण्टों की बिजली गुल ने उनके इन्वर्टर के भी होश फाख्ता कर दिए!कुछ घण्टों पहले जो इन्वर्टर खिलखिलाकर हँस रहा था,वो दस-बारह घण्टे बाद ही मुँह लटकाये पड़ा था!
     ऐसे में याद आई तो "लालटेन" (लेंटर्न) की! मैंने घर के स्टोर में पड़ी 25-30 वर्ष पुरानी,जंग लगी लालटेन निकाली,जिसमें शायद 8-10 वर्ष पुरानी बाती भी लगी हुई थी,झाडी-पोंछी और मिट्टी का तेल भर दिया।दियासलाई की एक तीली ने लालटेन को घर का चिराग बना दिया!मेरे 10 वर्ष के बेटे ने जब ये अजूबा देखा तो बोल पड़ा-"पापा,आज कौनसी दीवाली है?" उसने अभी तक इस तरह के कंदील ही दीवाली पर देखे थे!
    आधुनिकता की चकाचौंध में कुछ तथाकथित गयीगुजरी, पुरानी,आउट ऑफ डेटेड घोषित हो चुकी चीजे भी समय आने पर अपनी उपयोगिता दिखा कर सबक दे दिया करती है कि इस दुनिया में कब किसकी ज़रूरत पड़ जाए कहा नहीं जा सकता!!

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

!! जीवन तो है ही संघर्ष का नाम !!

जीवन तो है ही संघर्ष का नाम !
   
    'क्या आप परेशान है? बिमारी,आर्थिक तंगी, असफलता,घरेलू झगड़े,आपका पीछा नहीं छोड़ रहे?बेटा-बेटी आपकी आज्ञा के विरुद्ध काम करते हैं?पति-पत्नी में झगड़ा होता रहता है?भाई-बहनों से मनमुटाव है?आपसी संपत्ति का झगड़ा है?भाड़े के फ्लेट में रहते हैं? व्यवसाय में अपने दोस्तों-सम्बन्धियों से पीछे रह गए हैं?लड़का-लड़की बड़े हो गए और उनकी शादी नहीं हो रही है?उधारी अटक गई है?नौकरी कर रहे हैं?अगर आप भी इनमेसे किसी एक या अनेक समस्याओं से ग्रस्त हैं और उनका समाधान चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क करें।'
     इस तरह के तमाम विज्ञापन हमारे सामने तकरीबन रोज ही आते रहते हैं,जिनमें कईं 'ज्ञानीजन' तरह तरह के उपाय भी इन समस्याओं के हमें सुझाते हैं।इतना ही नहीं,हमारे आसपास के कईं मिलने वाले भी इन समस्याओं को दूर करने के बहुत से अज़ीबोगरीब रास्ते दिखाते हैं,जिनकी कोई विश्वसनीयता ही नहीं होती! कमाल देखिये कि ऊपर बताई गई समस्याओं मेंसे एक या अनेक हम मेंसे हर एक के जीवन में अवश्य होती ही है।किसी के जीवन में एक,तो किसी के जीवन में अनेक समस्याओं का होना कोई नईं बात नहीं है।नयी बात तो तब होगी,जबकि इस संसार में कोई एक,जी हाँ कोई एक इंसान ऐसा मिल जाए जो कहे कि मुझे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है,कि मेरे पास हर तरह का सुख है।और वास्तव में ऐसा हो भी! क्या ये सम्भव है? क्या जिंदगी मेसे हर तरह के दुःख को निकाल कर सिर्फ सुखों को ही कायम रखा जा सकता है? 
     जी नहीं,ये कदापि संभव ही नहीं है।जीवन तो है ही संघर्ष का नाम,जिसमें तरह-तरह के दुःख, परेशानियां आती ही रहती है।हाँ इसकी मात्रा में अवश्य फर्क हो सकता है।कोई कम दुखी,कम परेशान हो सकता है तो कोई ज्यादा।इन दुखों से,इन परेशानियों से हम बाहर निकलने का,कम करने का प्रयास कर सकते हैं और हमें करना भी चाहिए,जो हम करते भी हैं,किन्तु इसके लिए हमें किसी के बहकावे में आकर गलत मार्ग का चयन कभी नहीं करना चाहिए।पैसे लुटाने से और अंधविश्वासों की राह का पथिक बनने से अगर दुःख-परेशानियां-समस्याएं कम या खत्म हो जाती तो पैसे वालों और अंधविश्वासों का गोरखधंधा चलाने वालों की ज़िन्दगी में कोई दुःख-परेशानी होती ही नहीं और वे दुनिया में सबसे सुखी लोग होते !लेकिन क्या ऐसा है ? ज़रा आप अपने आसपास नज़र घुमा कर देखिये,हक़ीक़त आपको पता चल जायेगी!
     तो फिर आखिर इन तमाम तरह की परेशानियों-समस्याओं-दुखों को दूर करने का तरीका क्या है? तरिका है! तरीका ये है कि अपने भगवान् को,अपने आराध्य को याद करते हुए स्वयं में आत्मविश्वास, सकारात्मक सोच पैदा की जाए,दुःख और सुख दोनों को ज़िन्दगी का अनिवार्य हिस्सा मान कर सहज स्वीकार किया जाए,खुद दुःख, परेशानियां, समस्याओं से मुकाबला करते हुए भी प्राणी मात्र के दुखों,परेशानियों,समस्याओं को बांटने की भावना रखी जाए तथा दुखों-परेशानियों-समस्याओं को भगाने,दूर करने,कम करने का तथा सुखों को बुलाने का निरंतर पुरुषार्थ करते हुए जीवन बिताया जाए !जी हां,इन उपायों के अलावा और कोई उपाय नहीं है ज़िन्दगी को आराम से जीने का !दुखों,परेशानियों,समस्याओं को भी जीवन का अनिवार्य हिस्सा मानकर ही इनकी पीड़ा को कम किया जा सकता।जिंदगी जीने के लिए हवा का होना ज़रूरी है,लेकिन क्या हवा के झोंकें के साथ उड़कर आने वाले और आँख में घुस जाने वाले कचरे को रोका जा सकता है?जीने के लिए पानी का होना ज़रूरी है,लेकिन क्या सौ प्रतिशत शुद्ध और क्रिस्टल क्लियर पानी की ही उम्मीद कभी पूरी हो सकती है?जीने के लिए खाना आवश्यक है,किन्तु क्या बिना मिट्टी/घासपूस/कचरे के अनाज पैदा किया जा सकता है? तो फिर ज़िन्दगी से सिर्फ सुखों की ही उम्मीद क्यों?
     ज़िन्दगी में कचरा,मिट्टी,घासपूस की तरह दुःख, परेशानियां,समस्याएं भी आती ही रहेगी,इन्हें दूर करते रहिये......फिर आएगी......फिर दूर कीजिए......फिर आएँगी......फिर दूर कीजिये ! ज़िन्दगी जीने का इससे बेहतर,सलीकेदार और सच्चा तरीका दुसरा है भी नहीं!
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