बुधवार, 6 जुलाई 2011

!! तड़का मार के !!

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~~~~~~ *** तड़का मार के *** ~~~~~~
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'चावल' बोला 'दाल' से,मुझ बिन तू अधूरी !
चल, 'कुकर' में चलें, कमी करदें पूरी !!
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'साम्भर' कहे 'इडली' से,इतनी मत खुश होय !
जो मैं न तेरे साथ तो,तुझे ना पूछे कोय !!|
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'वडा' बोला 'पाव' से,रौब से मत कर बात !
मुम्बई के ठेलों पर तेरी,मुझ बिन क्या बिसात !!
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'भेल' खडा चौपाटी पर,'पूरी' को बुलाय !
आजा मेरी बांहों में,हम 'भेल-पूरी' बन जाय !!
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ठेले पर पडा आम 'लंगडा',झर-झर आंसू बहाय !
बोला-मुझे ना पूछे कोई,सब 'हापूस' ले जाय !!
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मंगलवार, 5 जुलाई 2011

!!हम !!

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मैं 
'मैं' था !
तुम
'तुम' थी !!
जब,
'हम' न थे !!!
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अब
'मैं'
और 
'तुम',
हो गए हैं 
गुम !
''हम'' में !!
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ये गुमशुदी अच्छी है !!
इसे ना तलाशो !!!
ये सुकून देती है !!! 
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शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

!! ये कहानी नहीं हकीक़त है !!

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आज सुबह उठा तो मूड कुछ सहज नहीं लग रहा था...थोड़ा सा आलस महसूस हो रहा था.....अपने बगीचे में पहुँच कर देखा तो आसमान बादलों से भरा था...हालांकि बारिश की कोई संभावना नहीं दिख रही थी....ठंडी-ठंडी हवाएं प्रकृति में खो जाने का आमंत्रण दे रही थी.....घर के बाहर खड़े अधेड़ नीम के पेड़ से मेरे बगीचे में गिरी मीठी निबोलियाँ उठा कर मुंह में डाली तो सहज ही अपना बचपन याद आ गया ! अगले ही पल अपनी 25-30 वर्ष पुरानी,भंगार हो चुकी साईकिल को घसीटता हुआ पास ही के पंक्चर निकालने वाले के पास ले गया....एकाध पंक्चर मिला,उसे ठीक करवाया, हवा भरवा, हल्का सा कपड़ा साईकिल पर घुमाकर धूल साफ़ की और उसपर सवार हो गया.....पीछे मुड कर देखा तो साईकिल वाला हंस रहा था....वर्षों बाद अपनी 'खटारा', लेकिन अब भी प्रिय साईकिल पर बैठा तो एकाध बार बेलेंस भी बिगड़ा, लेकिन सुहाने मौसम ने हौसला दिया और मैं प्रकृति का सामीप्य पाने सुनसान रस्ते पर निकल गया.हर पेडल पर मेरी पुरानी साईकिल अलग तरह का संगीत निकाल रही थी.सुनसान से रस्ते पर बस इक्का-दुक्का साईकिलें थी,या फिर कोई पैदल ही आ-जा रहा था.गिलहरियाँ और तितर मेरा रास्ता काट रहे थे....और आस-पास के पेड़ों से किसिम-किसिम के परिंदों की आवाजें आ रही थी.....ठंडी हवाएं और थोड़ी-थोड़ी देर का सन्नाटा मुझे अजीब से सुकून से भर रहा था.....सड़क पर बिखरी बचपन की अनगिनत यादों को मैं समेटता जा रहा था.....मन चाह रहा था कि यह सफ़र कभी ख़त्म ही ना हो....लेकिन ये संभव नहीं था....मैंने साईकिल मोड़ी और घर की तरफ बढ़ चला.....मेरा मूड बिलकुल बदल चुका था.....एकदम तरोताजा महसूस कर रहा था मैं ! वर्षों बाद मैं अपना बचपन जी आया था,चाहे चंद लम्हों के लिए ही सही....!! आप भी कभी थक जाए, किसी तनाव में आ जाए, या कभी बात-बेबात मूड उखड जाए तो कुछ लम्हों के लिए उबड़-खाबड़,पुराने,एकांत रास्तों पर निकल पड़े --अपनी नयी या खटारा साईकिल पर और प्रकृति से दो-चार बातें कर लौट आयें....एक सुकून के साथ...नयी उर्जा के साथ...!!!! ( ये कहानी नहीं हकीक़त है). 
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