गुरुवार, 1 अगस्त 2013

!! आखिर करता क्या है आदमी???? !!


!!! आखिर करता क्या है आदमी???? !!!
आखिर करता क्या है आदमी????
उठकर सुबह पीता है बैड टी,
पलटते हुए पन्ने अखबार के !
ये अलग बात है कि
मुंह अँधेरे आए दूधिये से उसने 
ले लिया हो दूध 
और चढ़ा दिया हो गैस पर....
या कि 
नल में आते हुए 
म्युनिसिपल्टी के पानी को 
भर दिया हो मटकों में
अल-सुबह....,
और शायद 
बाँध भी दिए हो 
स्कुल जाते बच्चे के 
बूट के फीते
और छोड़ भी आया हो 
स्कुल की बस तक....!!
लेकिन ये भी क्या कोई काम हुआ.....!
तो फिर 
आखिर करता क्या है आदमी????
शेविंग बना,नहा-धोकर 
आराम से करता है 
गरमागरम नाश्ता,
और भाग जाता है दफ्तर 
या कि दुकान पर
घर के कामों से बचते हुए.....!
ये अलग बात है कि
तेज कदमों से पैदल चलते हुए
या कि 
बस -ट्रेन में धक्के खाते हुए
दिमाग उलझा रहता है उसका
पत्नी की छोटी-मोटी पीड़ा में,
या कि
बच्चों को 
अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने में.....!!
लेकिन ये कोई काम है क्या?????
तो फिर 
आखिर करता क्या है आदमी????
दफ्तर में
ऐश करता.....
चाय पीता......
गप्पे मारता.....
टाईम पास करता......
या कि
दुकान  पर 
आराम से बैठ 
नोट गिनता है आदमी.......!!
तो फिर 
आखिर करता क्या है आदमी????
ये अलग बात है कि 
दफ्तर में 
बैठा आदमी
कठिन से कठिन काम 
 जल्दी करने का तनाव
भोगता है अनवरत
ताकि तरक्की हो जल्दी 
और बीबी-बच्चों 
की ख्वाहिशों को 
कर पाए पुरा ......
और दुकान  पर नोट गिनता आदमी
अल सुबह से देर रात 
खाना-पीना भूल
करता है हाड़तोड़ मेहनत
ताकि बीबी-बच्चे के ख़्वाब
हो जाए पुरे....!!
लेकिन ये भी क्या कोई काम है?
तो फिर 
आखिर करता क्या है आदमी????
शाम को घर लौटते हुए 
बैठ जाता है किसी 
चाय के ठेले पे
दोस्तों के संग,
बची-खुची गप्पे मारने
और घर के कामों से बचने के लिए ....!!
ये अलग बात है कि
घर बनाने....
या कि 
बच्चों की फीस भरने....
बीबी का इलाज़ करवाने......
बहन की शादी करने.....
आदि-आदि के लिए 
पैसों का जुगाड़ करने के लिए 
चिंतित सा 
दोस्तों से करता हो मशवरा......!!
लेकिन ये भी क्या कोई काम है?????
तो फिर
आखिर करता क्या है आदमी????
रात को 
आदमी आता है दफ्तर/दुकान से.....
सुनता है मांगे बीबी-बच्चों की....
पुरे दिन घूमते-फिरते हुए 
ऐश-मौज करने,गप्पे मारने के 
ताने सुनते हुए
कटवाता है सब्जी,
पानी के साथ 
हलक में उतारते हुए निवाला
 ''दिन भर घर में खटती हुई पत्नी" की 
सुनता है पीड़ा.....
और चिंतन-चिंता की उलझन में उलझ
उनींदा सा सो जाता है आदमी......!!!
तो फिर 
आखिर करता क्या है आदमी????
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-- अशोक पुनमिया --