सोमवार, 19 सितंबर 2011

!! इम्तेहान बाकी है !!

जिस्म में मेरे जब तलक जान बाकी है,
खुदा जाने कितने और इम्तेहान बाकी है !
दोस्तों की फेहरिस्त लम्बी हुई खूब मगर,
दर्दो-ग़म में बस अब पहचान बाकी है !
यूँ तो लिखे हमने भी ढेरों शे'र अब तलक,
दे मुकम्मल पहचान वो बयान बाकी है !
'तिहाड़' खुले रखना तू दरवाज़े रात-दिन,
'कुर्सियों' पर अब भी कईं 'बेईमान' बाकी है !
फ़क़त लिखने के लिए लिखना मत 'अशोक',
लिखना है वाजिब,अगर तेरा ईमान बाकी है ! 
************************************************


1 टिप्पणी: