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------------- बरसाती मुक्तिका -------------
आबाद हल-बैलों से अब खेत-खलिहान हो गए !
बादल गाँव पर मेरे,जम कर मेहरबान हो गए !!
खा कर थपेड़े लू के,मरणासन्न थे जो बेचारे,
पौधें वो लिपट के बारिशों से बांके-जवान हो गए !
छेड़ा है राग भौरों ने,कलियों के पास मंडरा कर,
शाख पे लटकते फूलों के,खड़े अब कान हो गए !
इठलाती नदी निकली है,मेरे गाँव की सरहद से,
उफनते नाले मिलने को उससे,बेईमान हो गए !
'पर' निकले चींटियों के,मकोड़े बदहवास से हैं !
कीट-पतंगे अब घरो में बिन बुलाये मेहमान हो गए !!
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आज 16/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही बढिया।
जवाब देंहटाएंमाथुर साहब,
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को लिंक करने के लिए धन्यवाद.
ब्लॉग पर आते रहिएगा--आभारी रहूँगा.
सदा जी,
जवाब देंहटाएंआभार आपका.