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.......देश के अवाम की बेहतरी के लिए पर्याप्त जनसमर्थन के बल पर 'अन्ना' द्वारा शुरू किये गए एक जन-आन्दोलन का राजनीति में प्रवेश करना कईओं के गले नहीं उतर रहा है ! सरकार और सरकार की 'सोच' रखने वाले लोग 'अन्ना' के जन-आन्दोलन को अधूरे आन्दोलन की 'मौत' मान कर जश्न मना रहे हैं,जो कि एक खुशफहमी के अलावा कुछ भी नहीं है.
.......वैसे भी सरकार और उसके अंध-भक्तों के गले की फांस बन चुका 'अन्ना' का ये जन-आन्दोलन उनकी बैचेनी का प्रमुख कारण बना हुआ था,और सरकार का पूरा प्रयास ही ये था कि कैसे भी करके ये जन-आन्दोलन अपनी मौत मर जाए,ताकि उसके काले कारनामें उसकी लुटिया ना डूबा सके.इसके लिए प्रयास इतने निम्न स्तर पर पहुँच चुका था कि सरकार के बड़े-बड़े 'मंत्री' अन्ना को बातचीत का धोखा दे कर,उनकी टीम में गलतफहमी पैदा कर टीम को तोड़ने पे उतारू थे ! सलमान खुर्शीद जैसे विद्वान लोग 'अन्ना' से बातचीत मात्र इस लिए कर रहे थे ताकि अंग्रेजों निति 'फुट डालो और राज करो' को अमल में लाया जा सके!सलमान खुर्शीद के मीडिया को दिए गए बयान अंग्रेजों की उसी निति का खुलासा करते हैं!
.......देशहित और अवाम के हित की बात करने वाले 'टीम अन्ना' के सदस्य जब 'गांधी' के पदचिन्हों पर चलते हुए अनशन कर रहे थे,तब ये 'गांधीवादी'सरकार संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पर पहुँच कर अनशन करने वालो की 'मौत' का इंतज़ार कर रही थी ! लोकतंत्र में एक सरकार जब अपनी ही जनता की आवाज़ सुनना बंद करदे और उसकी जान की दुश्मन बन जाए तो फिर उसके नैतिक पतन में बाकी क्या बचता है ? इस सरकार ने ये बात खुले रूप में बता दी है कि वह अवाम की वाजिब बात भी सुनने को तैयार नहीं है,और वह इस देश को वैसे ही भ्रष्टाचारपूर्ण तरीकों से चलाएगी जैसे वह चाहती है ! ऐसी स्थिति में एक ही रास्ता बचता है कि मौत को गले लगा कर भ्रष्टाचारियों को मनमानी करने के लिए खुला छोड़ देने से बेहतर है कि राजनीति के माध्यम से संसद में बहुमत जुटा कर इस देश को बचाया जाए !'टीम अन्ना' ने,देश के कईं हितचिंतकों की बातों पर गौर करते हुए आखिर राजनीति में आने का निर्णय लेकर इस देश को भ्रष्टाचार मुक्त करवाने और अवाम को उसका हक़ दिलवाने के अपने लक्ष्य की और ही एक महत्वपूर्ण कदम बढाया.
.......भ्रष्ट नेताओं और उनके पिट्ठुओं में मची खलबली भी इसी बात को पुख्ता करती है कि 'अन्ना' का आन्दोलन मरा नहीं बल्कि साहस और शक्ति के साथ एक सही दिशा में बढ़ चला है.
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जो 65 साल में नहीं हुआ वो चमत्कार अब तीन साल में होगा...लेकिन बड़ा सवाल है कि कैसे होगा ये ?
जवाब देंहटाएंbadal merthi ji,
हटाएंजो काम ६५ साल में नहीं हुआ वो भले ही ३ साल में ना हो,लेकिन एक शुरुआत तो अन्ना और उनकी टीम ने कर ही दी है.अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम देशहित में अन्ना और उनकी टीम को कितना समर्थन-सहयोग दे पाते हैं.
अन्ना के इस कदम का मैं स्वागत करता हूँ ... ये सरकार कुछ नहीं करने वाली बस अपनी राजनीति स्वार्थ हित में करती रहती है ...
जवाब देंहटाएंदिगंबर नासवा जी,
हटाएंबिलकुल दुरुस्त फरमाया आपने.इस सरकार ने लोकतंत्र को लूटतंत्र में बदल दिया है,और इसके स्वभाव में तानाशाही झलकने लग गयी है.अन्ना ने जो ज़मीन एक जन-आन्दोलन के रूप में तैयार की है अब उसको मज़बूत करते करते रहने की ज़िम्मेदारी अवाम की भी है.सही ताकतों के साथ मिल कर लड़ी गयी लड़ाई देर-सवेर अवश्य ही जीती जाती है.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ७/८/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
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