*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*: *:*:*:
जब मयस्सर ना हो
रोशनी सूरज की,
जब ना दिखे
दीपक दूर-दूर तक
टिमटिमाता कोई,
जब कोई जुगनू
गुज़रे भी ना
आस-पास से,
और उतर जाए
जब मयस्सर ना हो
रोशनी सूरज की,
जब ना दिखे
दीपक दूर-दूर तक
टिमटिमाता कोई,
जब कोई जुगनू
गुज़रे भी ना
आस-पास से,
और उतर जाए
घना अन्धकार
भीतर तक,
तब
'स्व-चिंतन' की
एक चिंगारी
कर देती है रोशन
पथ को,
जिस पर चलते हुए
मिल जाते हैं
झुण्ड जुगनुओं के,
सजने लगाती है
दीप मालाएं,
और
कईं-कईं सूरज
उगने लगते हैं !
'स्व- चिंतन' की चिंगारी से
अंधेरों को
भष्म होना ही होता है !!
*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*: *:*:*:
भीतर तक,
तब
'स्व-चिंतन' की
एक चिंगारी
कर देती है रोशन
पथ को,
जिस पर चलते हुए
मिल जाते हैं
झुण्ड जुगनुओं के,
सजने लगाती है
दीप मालाएं,
और
कईं-कईं सूरज
उगने लगते हैं !
'स्व- चिंतन' की चिंगारी से
अंधेरों को
भष्म होना ही होता है !!
*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:*:
बहुत जरूरी है स्वचिंतन...सही लिखा आपने
जवाब देंहटाएं