रविवार, 8 मई 2011

!!''माँ''!!

!!''माँ''!!
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इस चालाक दुनिया में

''माँ'' के लिए
सिर्फ एक दिन !
बाकी के
तीन सौ चौसठ दिन
माँ कहाँ है ??!!
दूसरों के वहां
झाड़ू-पोंछा-बर्तन
करती हुयी!,
बाप की बोतल के लिए
पैसा जुटाती हुयी !,
गोद में बच्चा
ओर
सर पर
तगारी उठाये हुए
दो वक़्त की रोटी का
जुगाड़ करती हुयी !,
पति से सताई हई......,
बेटों से तिरस्कृत.......,
बहुओं से डरी हुयी......,
शहर से दूर
किसी गाँव में
अपनी जिंदगी के दिन
अभावो,
तन्हाईयों,
में
अपने परिवार के लिए
दुआएं करती
काटती हुयी..''माँ''......!!!
"" ए माँ
इस चालाक दुनिया का
आज के दिन
तुझे सलाम ""!!!

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1 टिप्पणी:

  1. 'मदर्स डे'से शुरू हुए आप जो तो गोरे आकाओं की बखशिश है शायद यही से आपने विचार लेकर ३६५ दिनों का करुणा भरा रुलाता सा सच्चा रोजनामचा बेहतरीन कविता के रूप में प्रस्तुत किया है.माँ के पावों तले स्वर्ग और आचल में ममता का सारा आकाश पर आह वर्तमान में भोतिकता वादी संस्कारों से वही हाल है उसका जो आपने लिखा है.धन्यवाद व आभार

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