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आबो-हवा और संस्कारों से उसने मुझे संवारा है,
जैसा भी है गाँव मेरा,मुझको बहुत ही प्यारा है !
शहर से है पहचान मेरी,कुल जमा चार दिन की,
गाँव ने तो पीढ़ियों को बड़े लाड से दुलारा है !
करने लगे जब शहर बैचेन,परेशां,तनावग्रस्त,
समझलेना ऐ दोस्त तुझे तेरे गाँव ने पुकारा है !
एक रोया तो सब रोये,एक हंसा तो सब हँसे लिए,
नहीं कोई मज़ाक भाई,ये मेरे गाँव का नज़ारा है !
शहरों के समंदर में बस लहरों की सौगाते हैं,
मेरा गाँव बाद सफ़र के मुकम्मल एक किनारा है !
ये ग़ज़ल है,या कविता?मुझको ये मालूम नहीं,
मैनें तो जो दिल ने कहा,वो कागज़ पे उतारा है !
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जवाब देंहटाएंकरने लगे जब शहर बैचेन, परेशां, तनावग्रस्त,
समझ लेना ऐ दोस्त तुझे तेरे गांव ने पुकारा है
वाह्… सा वाऽऽहऽऽ………
ब्होत फूठरा अर साचा भाव है आपरी रचना में…
बधाई अर आभार !
प्रिय बंधुवर अशोक पुनमिया जी
घणैमान रामराम सा !
नमस्कार !
आपके ब्लॉग पर पहली बार पहुंचा हूं शायद …
कई सारी पोस्ट्स पर विविध सामग्री पढ़ कर प्रसन्नता हुई … हरख हुयो …
:)
समय मिले तब मेरे दोनों ब्लॉग्स पर भी विजिट अवश्य करें -
ओळ्यूं मरुधर देश री…
शस्वरं
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेन्द्र जी,
हटाएंहोसलाअफजाई के लिए शुक्रिया.
आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगा.