***************************************
पचहत्तर साल का एक 'बूढा' इस देश के अवाम के लिए मरने को तैयार है,लेकिन अवाम को सचिन के सौ शतकों और क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया पर भारत की जीत की ज्यादा चिंता है !'अन्ना' नाम का एक फकीर जब भूखा रह कर इस देश के सफेदपोश 'लुटेरों' से दो-दो हाथ करने को आमादा था,तब इस देश के अवाम के पास उतना समय नहीं था,जितना उस 'अन्ना' नाम के एक निस्वार्थी बूढ़े को चाहिए था...!!
प्रायोजक समाचारों के बूते ज़िंदा रहने वाले और अपने आप को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाला मीडिया और उसके स्वयं भू 'विश्लेषक' अन्ना के साथ जुटने वाले लोगों को 'तमाशबीन' बताते हैं,और भीड़ नहीं जुटने पर इसे 'अन्ना आन्दोलन' की विफलता बताते हैं.......यानी मीडिया स्वयं तय नहीं कर पा रहा कि उसकी राय क्या है ?और देश हित में उसका दायित्व क्या है ?मीडिया ने अपना काम सिर्फ अटकलबाजी और चटाखेदार ख़बरों तक ही सिमित कर दिया है,क्यों की इसी से उसका धंधा अच्छा चल सकता है !
'रावण' और 'कंश' ने खूब राज़ किया....उनकी कुटिलता में हिस्सेदार भी खूब थे....,लेकिन एक दिन उनकी भी दुर्गति ज़रूर हुई....!'राम','कृष्ण' उनसे टकराते रहे...विफल भी हुए होंगे....लेकिन अंततः सफलता उन्हें ही मिली.....!!
सत्य और अच्छाई एक दिन ज़रूर जीतेगी......,'अन्ना' जैसे लोग ये उम्मीद जगाते हैं,जगाते रहेंगे....!!
!!!!!!!!! जय हिंद !!!!!!!!!
***************************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें