शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

!!फेहरिश्त ज़वाबों की !!

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फेहरिश्त  ज़वाबों की अक्सर औंधे मुंह पड़ी मिली,
जिंदगी मुझको हमेशा नए सवाल लिए खड़ी मिली !
चाहा तो बहुत मैंने भी,देंखू वक़्त बदलता हुआ,
तकदीर मेरी,जब भी मिली,बंद पड़ी घडी मिली !
यूँ मिला सिला उसे घर बसाने की आज़ादी का,
बेड़ियाँ पांवों में और हाथों में हथकड़ी मिली !
बड़ों की बड़ी दुनिया में बड़प्पन जब भी ढूंढा मैनें,
टुच्चापन था खूब और बस बातें बड़ी-बड़ी मिली !
बचपन याद आ गया,दादी संग जो गुजरा था,
घर के कोने में इक दिन जो दादाजी की छड़ी मिली !
थी टिकिट 'सिनेमा' की पर ऑफिस ने उलझा दिया,
देर रात जो घर पहुंचा तो 'बीबी'उखड़ी-उखड़ी मिली !
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1 टिप्पणी:

  1. सार्थक पोस्ट, सादर.
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधार कर स्नेह प्रदान करें.

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