गुरुवार, 31 मई 2012

!!अकड़ती लू,नाराज़ परिंदे !!

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.......हमारे यहाँ अघोषित कर्फ्यू लगा है !
.......सुबह के 11 बजे से शाम के 6 बजे तक घर से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाना बड़ी बात हो गई है ! पारे ने 45-46 पर डेरा जमा रखा है ! लू के थपेड़ों से,पिचके हुए गालों पर भी 'लालिमा' आ गई है,और सरकार को मुगालता हो गया है कि अब सभी खाते-पीते है...कोई भी भूखा नहीं है ! 
......रात को अपने घर जा कर सोया हुआ 'सूरज' निरंतर गर्म साँसे छोड़ रहा है ,'रात' बैचेन है, क्योंकि सवेरे फिर सूरज त्योरियां चढाते हुए ही निकलने वाला है,और रात भर जागी हुई रात को दिन में भी सुकून नहीं मिलना है !!   
......चाय की थडियों पर चूल्हे ठण्डे पड़े हैं,भगोने औंधे मुंह तिरस्कृत से हैं,चाय की पत्ती उबाले जाने के इंतज़ार में रुआंसी सी हैं और शक्कर अलग-थलग पड़ी खुद को ही कडवा मह्सूश कर रही है! कुल्हड़ अपने कद्रदानों के मुंह लगने को बेताब से हैं और थडी वाला माथे पर सलवटें डाल चिंतित सा बैठा है ! गर्मी,प्राणियों को कपडे की तरह निचोड़ने को आमादा है !!
......दूसरी तरफ छाछ,लस्सी और गन्ने के रस की बन  आई है,पसीने से तरबतर लोगों के लबों से लग ,हलक में उतर कर जैसे उन्हें मोक्ष मिल गया है !!
......'लू ' की अकड़ती चाल को देख कर बागानों में पोधों ने कलियों को अपने आगोश में छुपा लिया है,और फूलों  ने मिटटी में गिर कर पनाह मांग ली है ! टहनियों पर लटकती खुशहाल पत्तियों के मुंह गर्म हवा के चांटे खा-खा कर लटक से गए हैं !
......तपते मौसम से नाराज़ परिंदों ने हड़ताल कर दी है,और मांग रख दी है कि जब तक बादल,बारिशों को काँधे पर बिठा कर हमारे आँगन में नहीं आते,हम दिन में परवाज़ नहीं भरेंगे !
.......धरा की धूल ने,उन्मुक्त बहती हुयी गर्म हवाओं के साथ मिल कर साज़िश रची है लोगों से जबरन 'होली' खेलने की ! विज्ञान के बल पर इठलाता इंसान इस साज़िश को आँखे बंद किये हुए चुपचाप खडा देखने को विवश है !!   
......यह स्थिति कब बदलेगी कहा नहीं जा सकता ! जून के महीने के अभी पुरे तीस दिन बचे हैं,केलेंडर यह दिखा-दिखा कर डराए जा रहा है !
......कुल मिला कर बात थोड़ी सी अजीब है,मगर इस 'गर्मी ' ने सबको 'ठंडा' कर रखा है !!!
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