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अभी-अभी दक्षिणी भारत की यात्रा से लौटा हूँ.
हलकी बारिश और ठंडी हवाओं ने मुझे तृप्त कर दिया है!
बेंगलुरु से लगभग 150 -200 किलोमीटर दूर एक कसबे में अपनी पारिवारिक शादी में सम्मिलित होने गया,तो रेल में बैठे-बैठे बाहर का मनमोहक नज़ारा देख कर मंत्रमुग्ध हो गया !
चारों और फैली हरियाली से नज़र हटाये ना हट रही थी !प्रकृति का इतना सुन्दर रूप शायद मैंने और कही अभी तक नहीं देखा है....!!
मीलों तक फैले केले और नारियल के पेड़ मुझे बार-बार आमंत्रण सा दे रहे थे......मैं बेबस था....!!
पगडंडियों से संवरे छोटे-छोटे गाँवों पर मानो प्रकृति ने मन लगा कर हरे रंग की कुंची फेर दी हो !!!
हरे-भरे दरख्तों के बीच छोटी -छोटी झोंपडिया शहरों की चमकीली अट्टालिकाओं को भी विस्मृत सी कर रही थी.....!! मुझे रह-रह कर अहसास हो रहा था कि जिंदगी यदि कहीं 'ज़िंदा' है,तो वो यही जगह है......!!!
ईश्वर कभी मौक़ा दे प्रकृति की ऐसी अद्भुत रचना में कुछ लम्हें गुजारने का.......तो सच में ''लाईफ'' बन जाए.......!!!!!! :))
प्रकृति के इसी रूप के चंद छाया-चित्र आपके लिए,मेरे मोबाईल से.....!
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बस या ट्रेन में बैठकर बाहर का नज़ारा देखते रहना हमें भी बड़ा अच्छा लगता रहा है .
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत वर्णन किया है . शहर की जिंदगी से हटकर गाँव का जीवन हमेशा अच्छा लगता है , लेकिन कुछ पलों के लिए .
फोटो बढ़िया लगे...
जवाब देंहटाएंमहेंद्र जी,
हटाएंशुक्रिया.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-062012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
डाक्टर साहब,
हटाएंतहेदिल से आभार आपका.
फोटो बहुत ही सुन्दर हैं |
जवाब देंहटाएंआशा
आशा जी,
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद.