देख मलाई-रबड़ी जब मुंह में आये पानी,
कैसे करे कोई,दूध का दूध पानी का पानी!
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'दूध का दूध पानी का पानी' मुहावरा केवल विपक्ष के लिए
बना है.जिसके पक्ष में कुर्सी आई,उसके लिए इस मुहावरे का कोई अर्थ नहीं.बल्कि तब
तो ये मुहावरा पक्ष के लिए 'अनर्थ' बन जाता है.इस लिए पक्ष वाले इस मुहावरे से कन्नी
काटते हैं और विपक्ष वाले इस मुहावरे को पानी पी पी कर दिन में सौ बार दोहराते है!
भाजपा जब संसद में और विधान सभाओं में विपक्ष में
बैठा करती थी,तब कांग्रेस के काले कारनामे पर पहली प्रतिक्रिया के रूप में भाजपा
के मुंह से 'दूध का दूध पानी का पानी' ही निकलता था!मतलब कि कोंग्रेसियों पर आरोप
लगा नहीं कि जांच बिठा दो ताकि 'दूध का ढूध पानी का पानी' हो जाए.लेकिन उस वक़्त 'चुल्लू भर पानी' के मुहावरे को प्राप्त हो चुकी कॉंग्रेस तब भी 'दूध का दूध पानी का
पानी' करवाने को हरगिज़ तैयार नहीं होती थी! इधर भाजपा 'पानी पी पी कर' दिन भर 'दूध का
दूध पानी का पानी' वाला मुहावरा ठोकती रहती थी! दरसल उस वक़्त कॉंग्रेस के लिए 'दूध का
दूध पानी का पानी' मुहावरा अनर्थकारी था सो उसने उसको पानी के साथ निगल कर भुला ही
दिया था.
चुनाव हुए. हालात बदले. मतदाताओं ने कॉंग्रेस को
चुनावों में पानी पिला कर 'शर्म से पानी पानी' कर दिया और भाजपा को सत्ता सौंप
दी.दूध का दूध पानी का पानी वाला मुहावरा भुला बैठी कॉंग्रेस जब विपक्ष में आ बैठी
तो उसके रणबांकुरों ने पुनः झांड-पोंछ कर दूध का दूध पानी का पानी वाला मुहावरा
विपक्ष की टेबल की दराज़ मेसे निकाला और पानी पी पी कर भाजपाईयों के सामने रटने
लगे!अब बारी थी भाजपाईयों द्वारा इस मुहावरे को भूल जाने की,क्यूँ कि सत्ता के लिए
ये मुहावरा अनर्थकारी जो था! सुषमा-वसुंधरा,मूंडे-तावडे, आदि इत्यादि के लिए
कॉंग्रेसी 'दूध का दूध पानी का पानी' वाला राग अलापते रहे,लेकिन भाजपा इस मुहावरे को
बिना पानी का घूंट पिए हलक से उदरस्थ करती रही! सत्ता की चौखट पर 'दूध का दूध पानी
का पानी' मुहावरा फ़ैल हो गया! होना ही था! बात सीधी सी है. जब सामने मलाई रबड़ी खाने को
पड़ी हो तो ऐसे में कोई क्यूँ ये याद रखे कि 'दूध का दूध पानी का पानी' किया
जाए?मलाई-रबड़ी उड़ाने के मौके बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, ऐसे में सिर्फ दूध को याद
रखना मुफीद होता है! आखिर मलाई-रबड़ी दूध से ही बनती है! 'पानी' तो चुल्लू भर या शर्म
से पानी पानी वाली स्थिति में हिस्से आना ही है,फिर भला सत्तासुख भोगते हुए
क्यूँकर इस पर ध्यान दिया जाए!
वैसे भी अब तक की कारस्तानियों से ये पक्का हो चुका है कि सत्ता में बैठे लोग कभी भी 'दूध का दूध पानी का पानी' कर ही नहीं सकते! वे सिर्फ
दूध की मलाई,रबड़ी और कलाकंद खा कर हज़म ही कर सकते हैं! 'दूध का दूध पानी का पानी' करने का काम तो अवाम के हिस्से में है, और वो वक़्त आने पर ज़रूर करती
है! 'दूध,मलाई,रबड़ी और कलाकंद' खाने वालों को ये ज़रूर याद रखना चाहिए!
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'दूध का दूध पानी का पानी' करने का काम तो अवाम के हिस्से में है, और वो वक़्त आने पर ज़रूर करती है! 'दूध,मलाई,रबड़ी और कलाकंद' खाने वालों को ये ज़रूर याद रखना चाहिए!
जवाब देंहटाएंकविता जी,ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-07-2015) को "घिर-घिर बादल आये रे" (चर्चा अंक- 2027) (चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
शास्त्री जी,आभार आपका,मेरी पोस्ट को महत्पूर्ण लिंक देने के लिए.
हटाएंसही कहा आपने....सारे एक से हैं...कुछ साफ नहीं..जो करेगी जनता करेगी
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
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