सुबह के 11 बजे से शाम के 6 बजे तक घर से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाना बड़ी बात हो गयी है !पारे ने 45-46 पर डेरा जमा रखा है !
चाय की थडियों पर चूल्हे ठण्डे पड़े हैं,भगोने औंधे मुंह तिरस्कृत से हैं,चाय की पत्ती उबाले जाने के इंतज़ार में रुआंसी सी हैं और शक्कर अलग-थलग पड़ी खुद को ही कडवा मह्सूश कर रही है!
कुल्हड़ अपने कद्रदानों के मुंह लगने को बेताब से हैं और थडी वाला माथे पर सलवटें डाल चिंतित सा बैठा है ! गर्मी,प्राणियों को कपडे की तरह निचोड़ने को आमादा है !!
यह स्थिति कब बदलेगी कहा नहीं जा सकता ! जून के महीने के अभी भी 23 दिन बचे हैं,केलेंडर यह दिखा-दिखा कर डराए जा रहा है !
कुल मिला कर बात थोड़ी सी अजीब है,मगर इस गर्मी ने सबको ''ठंडा'' कर रखा है !!!
बहुत खूब अशोक साहिब कितने सलीके से गर्मी में खोपड़ी को सकून दिया है.धन्यवाद
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