शनिवार, 18 जून 2011

!! गाँव बुलाता है !!

!! गाँव बुलाता है !!
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रेगिस्तान से तपते
शहर में जब
जलने लगते हैं पाँव
और
झुलसने लगता है बदन,
तब बड़ा याद आता है
गाँव,
नीम और पीपल की
छाँव !
अच्छी लगने लगती है तब
शहर के प्रदूषण से
गाँव की धूल,
शहर के गटर से
गाँव की नालियां,
और शहर के कूड़े-करकट से
गाँव में छितराया हुआ
गोबर !
और 
सूट-बूट-टाई में लिपटी
मशीनों की जगह
धोती-गमछे और
घूँघट के पीछे के
''इंसान'' !
अक्सर गाँव बुलाता है....
याद भी आता है......
मगर
लौट के ''वो''
आये भी कैसे....!!
शहर की ''हवा'' की
लत जो लग गयी है
उनकी साँसों को........... !!  
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