तब बड़ा याद आता है
गाँव,
नीम और पीपल की
छाँव !
अच्छी लगने लगती है तब
शहर के प्रदूषण से
गाँव की धूल,
शहर के गटर से
गाँव की नालियां,
और शहर के कूड़े-करकट से
गाँव में छितराया हुआ
गोबर !
और
सूट-बूट-टाई में लिपटी
मशीनों की जगह
धोती-गमछे और
घूँघट के पीछे के
''इंसान'' !
अक्सर गाँव बुलाता है....
याद भी आता है......
मगर
लौट के ''वो''
आये भी कैसे....!!
शहर की ''हवा'' की
लत जो लग गयी है
उनकी साँसों को........... !!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें