शनिवार, 21 अप्रैल 2012

!! प्यार,मुहब्बत,इश्क,वफ़ा !!


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प्यार,मुहब्बत,इश्क,वफ़ा तू करके देख ! 
कसमो-वादों की गली से गुज़र के देख !!
नज़रों से नज़रें मिला कर हासिल क्या,
दिलबर को कभी बाहों में भी भरके देख !!
ना कर पायेगा तू जुल्मों-सितम कभी,
अपने खुदा से बस थोड़ा सा डर के देख !! 
देकर खैरात मुफलिसों को मत भाग यूँ,
ज़ख़्म उनके दिल के कभी ठहर के देख !!
घूमता है बन कर 'मुंसिफ' तू खूब 'अशोक',
मसले ज़रा अपने भी कभी घर के देख !!
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6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. आदरणीय डाक्टर साहब,
      मेर ब्लॉग पर पधारे,और आशीर्वाद दिया-- आपका आभारी हूं.
      आशा करता हूं मुझे निरंतर आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
      सादर.

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  2. जीवन की ये आग लगेगी प्यारी सी
    जल कर सोने जैसा कभी निखर के देख.
    तुझको भी बदली ! राहत मिल जायेगी
    मेरे आंगन में इक रोज उतर के देख.

    बहुत बेहतरीन रचना, अशोक जी बधाई स्वीकार करें............

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    1. अरुण जी,
      मेरे 'आँगन' में आप आये,शब्द -पुष्प बरसाए.....आभार आपका.

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  3. ना कर पायेगा तू जुल्मों-सितम कभी,
    अपने खुदा से बस थोड़ा सा डर के देख !!...
    प्रिय अशोक जी, अपने खुदा से कोई नहीं डर रहा.... सब खुदा को चूतिया बना रहे हैं...

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    1. लोकेन्द्र जी,
      ब्लॉग पर स्वागत है आपका.
      आपके विचारों का सम्मान करते हुए नम्र निवेदन करूंगा कि कृपया भाषा में थोड़ी सी शालीनता बरतें ताकि वैचारिक मंचों की गरिमा बनी रहे.

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