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........एक बार फिर 'विशेषाधिकारों' का हनन हो गया है !
........'रामदेवजी' ने वही बात कही जो कमोबेश देश का जन-जन जानता है,और बहुत हद तक कहता भी है ! ('विशेषाधिकारों' के हनन का रोना रोने वाले कभी पब्लिक के बीच जा कर अनुभव कर लें)
........हकीक़त ये है कि लोकसभा और राज्यसभा में कुल मिलाकर लगभग ढाई सौ से ज्यादा जनप्रतिनिधियों पर अपराधिक और गंभीर अपराधिक मामले लंबित है ! जब इस हकीक़त को ही कोई भारतीय रेखांकित कर दे तो फिर 'विशेषाधिकारों' का हनन कैसा?
........'विशेषाधिकारों' के एक हिमायती का कहना है कि लगभग बीस लाख लोगों के वोटों से चुन कर आने वाले सांसद का अपमान करना 'विशेषाधिकारों' का हनन है,लेकिन उन्हें ये कौन बताए कि बीस लाख लोगों के सामने यदि 'सांपनाथ' और 'नाग नाथ' का ही विकल्प हो तो फिर क्या किया जाए ? सच को रेखांकित करने वाली बातों को 'विशेषाधिकारों' का हनन मानने वाले आखिर सच का सामना करते हुए ये क्यूँ नहीं कह पाते हैं कि हाँ संसद में जो दागदार है,जो संसद की गरिमा गिराने वाले हैं,जो संसद में बैठने के काबिल ही नहीं है....उन्हें वास्तव में संसद में लाकर राजनितिक पार्टियों ने भूल की है और उस भूल को सुधारने की आवश्यकता है ! ऐसा कर के ही संसद और सांसदों की गरिमा को,उनके विशेषाधिकारों को बचाया जा सकता है !
........लोकतंत्र में यदि लोगों द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों की संविधान विरोधी हरकतों पर भी चुप रहने की सीख जनता जनार्दन को दी जायेगी तो फिर तानाशाही सिंहासन से आखिर कितनी दूर रह जायेगी ? बेहतर यही है कि जनता को धौंस-धमकी देकर मुंह बंद रखने की सीख देने की बजाय अपने ही गिरेबान में इमानदारी से झांका जाए,ताकि पता चल सके कि आखिर क्यों बार-बार जनता के बीच से ऐसी आवाजें उठती है,जिससे 'विशेषाधिकारों' के हनन का आभाष होता है!
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चर्चा मंच से यहाँ आना हुआ.
जवाब देंहटाएंअच्छी और विचारणीय प्रस्तुति है आपकी.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
राकेश जी,
हटाएंमेरे ब्लॉग पर पधारे- आभार.
आपके ब्लॉग का आनंद लेने अवश्य ही उपस्थित होऊंगा.
चर्चा मंच से आपकी रचना देखी बहुत ही बडिया जबाब विशेषाधिकार के ठेकेदारों को धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंअनिल जी,
हटाएंरचना पसंद कर टिप्पणी दी-आपका आभार.
मयंक जी,
जवाब देंहटाएंआपका और 'चर्चा मंच' का तहेदिल से शुक्रिया.