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...........कितना वक़्त हो गया किसी चिड़िया की चीं-चीं सुने हुए ?
और भौंरें की गुनगुनाहट कब सुनी थी ?
बगीचे के किसी दरख्त पर टंगते हुए मधुमक्खी के छत्ते में,मधुमक्खी को मधु इकट्ठा करते हुए कब देखा था ?
क्या गिलहरियों की दौड़ अब भी ताज़ा है ज़ेहन में ?
...........नीम के दरख़्त के निचे शीतल छाया में खड़े होते ही,कौवे द्वारा सर पर बीट कर देने से चोंके हुए कितने दशक हो गए ?
...........और बैलगाड़ी में जूते हुए बैलों द्वारा अपनी मस्ती में झूमते हुए बैलगाड़ी को खींचते देखना तो अब शायद नानी-दादी की कहानियों का एक दृश्य भर ही रह गया है !!!!
...........भागते-भागते कहाँ पहुँच गए हम......????!!...मालूम नहीं....!! मगर मंजिल का भ्रम बराबर बना हुआ...!!!
...........पाने की होड़ में कितना कुछ खो दिया......सब जानते हैं.....लेकिन जानते हुए भी अनजान है.....!!
...........जानबूझ कर अनजान बन जाने वाले इसी दौर में एक दिन अचानक ------
...........पूर्णिमा के एक दिन पहले वाली रात.
...........रात के आठ बजे का वक़्त.
...........अचानक बिजली गुल!
...........मैंने अपने 'लेपटॉप'' को विश्राम दिया,इटरनेट की आभाषी दुनिया से निकल कर, घुप्प अँधेरे को चीरता हुआ अपने बगीचे में पहुँच गया.
...........आसमान से चांदनी बरस रही रही थी.....छिना-झपटी के इस स्वार्थी दौर में भी चाँद,चांदनी को दोनों हाथों से लुटाने पर आमादा सा था....!!
...........एक नज़र अपने बगीचे में डाली तो अवाक रह गया......'कनेर' के सफ़ेद फूल ऐसा आभाष करा रहे थे मानों अभी- अभी कोई पेंटर उनपर सफेदा पोत गया हो.....,और 'रात की रानी' का पौधा जैसे बस अभी 'इत्र स्नान' कर लौटा हो.....!सम्पूर्ण बगीचे पर चाँद की शीतल दुधिया रौशनी की बारिश हो रही थी.......मेरा मन भी भीतर तक इस शीतल-दुधिया रौशनी की बारिश से भीगे बगैर ना रह सका.....!!
...........मै सोचता रहा.....''आखिर अब तक मैं इस अद्दभुत नज़ारें से क्यों अनजान था ???''
...........बिजली का यूँ अचानक गुल हो जाना मेरे लिए सुखद अहसास लेकर आया था.....अँधेरे में भी मुझे एक 'आलौकिक'' रोशनी मिल गई थी,जिससे मैंने भीतर तक उजाला अनुभव किया था....!!
...........आप भी किसी दिन जाने-अंजाने यूँ ही प्रकृति के किसी हिस्से को छू लिज़ीए.....कसम से,रूह सुकूं से तर हो जाएगी.... !!
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sab beete bate ho sab ,
जवाब देंहटाएंaccha post
http://blondmedia.blogspot.in/
आलोक जी,
हटाएंबीती बातों को भी कभी-कभी जी लेना चाहिए.....एक अलग ही सुकूं मिलता है!
आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
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मयंक जी,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका......'चर्चा मंच' के कारण कईं लेखकों-पाठकों से रु-ब-रु होने का मौक़ा मिल रहा है.
एक बार फिर आपका और 'चर्चा मंच' का दिल से शुक्रिया.