बुधवार, 8 अगस्त 2012

!! पथप्रदर्शक !!

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बचता नहीं
कोई विकल्प,
मात्र एक 'संकल्प'
बहुत काम आता है,
यही 'संकल्प'
कईं 'विकल्प'
दे जाता है !!
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ब बंद है
रास्ते तमाम,
और मैं 
चल पडा हूँ
'अटल इरादों' का
फावड़ा लिए
एक पथ बनाने.
बुहारने हैं कांटे,
हटाने पत्थर
राह में आने वाले !
गुज़रना है 
आग से,
पानी से,
और
पहाड़ से भी !
देखता हूँ
कब तक रहेगा बंद
रास्ता........!!!!
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तझड़ में खड़े पेड़ को
अपना सबकुछ 
छिन जाने का भाव
जीने नहीं देता......,
और
बसंत-बहार की उम्मीद
उसे मरने नहीं देती....!
अपनी जड़ों को जमाये
चुपचाप खडा पेड़
न हवाओं से शिकायत करता है....,
ना बादलों से भीख मांगता है....,
और ना ही 
सूरज से
रहम की फ़रियाद करता है....!
वह अटल खडा है,
अपने 
अटल विश्वासकी बदौलत !!
एक दिन बहार ज़रूर आएगी...!!!
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छाए जब
निराशा के बादल,
और
हताशा ने
जब घेरा मुझको,
तब 
रास्ते सभी
बंद से नजर आये !
शीशे में देखा तब मैंने
प्रतिबिम्ब अपना,
तो चौंक गया मैं,
देख कर
पतझड़ के सताए
एक
पेड़ को !
सहसा
'अन्दर' से एक
आवाज़ आई -
''दुत्कार कर निराशा को,
लतिया कर हताशा को
आगे  बढ़ा एक कदम
दिखेंगे रास्ते कईं !!''
मैंने पुनः देखा
शीशे में प्रतिबिम्ब अपना,
एक  हरा-भरा
फूलों-फलों से लकदक
पेड़ खडा था,
जीने की आरजू लिए !!
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